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Full text of "Vraj Ki Jhanki"

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रजकी स्ौकी 


(यात्रा) 





अरकक्पा शकाश 
पनद्यामदास ल्य 
गीराप्रेस,मोर खपुर 


चन २९९५ पथम सक्तरण ३२५८५ 
म १६९६१ दिती र्सरण ३००५ 
भ० १९९३ वतीय मस्फरण्‌ ३००० 
च° १९०४ चथ भ्रण ४०० 
भर १९९६ प्म रकरण ३००० 
० १९९७ धष श्एरण ३००. 
स० १९९८ सषठम भसरण ५००५० 
सं० २००० अश्म भस्कण ३००० 
सं २००० नकम धरण ९०० 


दोर १२ २८१ 


प्ता-- 


गीवा, गोसपुर मूल्य ॥ चार आना 


शरीदरि 


विषय-सूची 


विषय 
म्रजमटिमा 
बन नाममा कारण सौर खान 
विसार 
बन उपवन 
सरति 
घ्येषर 
परवत 
त्रजनयात्रा 
भयुरा 
मशराक़ी एेतिदाणिकता 
सथान-परिचय 
घाट 
परिमा 
प्रकीर्णक 
शिक्षानिमाग 
धर्मयासमे 
दरवाजे 
अन्यान्य स्थान 
व्यापार 
विद्धान्‌ 
या्नावणन्‌ 


षट 
१ 


शद 
शद 
१७ 
१७ 
१७ 
१८ 
० 
२० 
२१ 
२) 
३९१ 
र 
३२ 
३४ 
४ 
३५ 
द्‌ 
दे 
३७ 
३७ 
२७ 


विष्य पृष्ठाङ् 
कुसुदवन ३८ 
भिरिधरपुर “ ८ 


शाततुकुण्ड (सतोहार्गौष) ३८ 
दतियार्गोव ३८ 
स-घवशवर (गणेदराो) ३८ 


सेचरीर्गोव ३८ 
महूलायन (वाढीरगौवि) ३९ 
तोषर्गोव ३९ 
वि्यारवने ३९ 


जासिन ( यक्षहनूर्योव ) ३९ 
मुख  मेक्षरागतीर्थ ) ३९ 


रार्ोव ३९ 
जसोदीरगोषि ३९ 
अणोदीर्गोव ४० 
राधण्ड ४५ 
मोवधन ५१ 
जमनाउतोगेि ॥ +; 


अङग अरिगोव अपया 
अरिदरगोव 


४५ 
माधुरीङ्ण्ड ४५ 
मवनपुरां ५६ 
दुविरेकारगोव दुवे ण्डः 


पारारौली(परमराएखली) ४६ . 





भ्िषव | 

मोऽङ्ण्डयैढोगोय 

भ्यव (धः माम ) 

भायौर 

मकरीकुण्ट, गपकुण्ड, 

गोपिन्दकुष्ड 

प्यामदाक 

जततीपुरा 

स्दकुण्ड( ) ५० 

गोयिनीगो न 

ङीग( लठावन ५० 

गीव्ेपि ५१ 

पाडरमेवि ५१ 

परमद ( परममन्दिर | 

गोः ५१ 

बदन (वमी) गोष ५१ 
यदी 

शदरोली्गोपि र्‌ 

कामवन्‌ ५२ 

कनगासे्येवि ५४ 

चित्र मिचित्र शिस् ५९ 

ऊेचोगोव ५ 

उभारोर्गो ५९ 

चेरसाना १६ 

बिदारयने, गवर (गहर) 

यन ९६ 

मेमख्येवर्‌ ५८ 





श्वि ध्र 
मकेन तः 
रीदौर(रिसेय रोव ५ 
नन्दे्ोषि 

सीपरसगोषि (शम 
परश्च ) &२ 
िखायोरगोषि ६९ 
करल क्र 
बन्दोपर ६३ 
राधटीग्राम ६१ 
कामरगोयि ६४ 
दिगो ( द्गति ) ६४ 
शप्रधायी ९५ 
कोणी ६९ 
ता ९९ 
ररगद ६६ 
वेल्रमोचन, 

पार ओर चीरथार ९७ 
नेन्दधादट ६७ 
व्ईगोपि ९७ 
वत्ख्वने ६७ 
रालोलीगोष ६८ 
नयी-तेमयीगोमि ६८ 
हरयो ६८ 
आन्डी ६९ 
४ ६९ 
छ्टीक्रा ९९ 


विय 111 विषय पृष 
गरुड गोविन्द्‌ ७० देवनगर ९२ 
अकूपार) अबूरर्णीव = ७० बह्याण्डयाट २ 
मतरोढ ७० फोठेपाट, लेर्गोव ९६ 
परल्दायन ( भीयन ) ७१ कर्पीरल द्द 
षृन्द्ायनके याद ८५ मदावन ९३ 
सुरी ( सुरभीरवन ) ८५ गोबर ९४ 
मुञ्चाय्वी ८५ राव ९५ 
भद्रेवन ८५ | कुरु य आवदयकबते ९६ 
माण्दीरवन ८६ | वअजभूमिमे ममिरे ९६ 
मारगाव ८६ अभूमि गोवध ९८ 
न हः मयुर इन्दाव र बीरचरभे 
पेल्मवन ८७ 
मानसरोदर ५६ शिक्रार सेटनेश मनाष्ी १०१ 
राया ८७ स्टेशनकी आशा „ १०१ 
लोष्वन ८७ वदयक सूचना १०१ 
बृ्दूवन्‌ ८७ | मयुर कुठ वीर्थसनिडी 
मान-दी-बन्दीदेवी ८८ दूरी वया ख्वारी १०३ 
वल्देवर्गोव ८८ | लेखकपरिचय १०४ 


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>. 


मीरः 


चिच्र-खती 
1 


१-भीःन्दनदन ( ष्ट्य) १६ 


मुरा 
र्~शीभूतेश्वरनाय दर्‌ 
३-भीपिष्पनवर्‌ रर 


५-भीरयेधरनाय महदे रे 
प-धीगाकर्येधरनाय महदेव २३ 


६-पिभामषार २६ 
७-सूष्णगद्भापाद २६ 
<-भीद्यर्कापीश्यजीका मन्दिर २७ 
९ ~भीरापेदयामनीकी 


सशी, स्यामीषाट २७ 
२०-मथुराे यथदयल्यकी 

प्क घुर मूर्ति ३२ 
११-मथुराके सग्रदल्य्ी 

छख भुदर मृतिर्यो ३३ 


-*>2&~- 
र-भीपधाङृण्ड ४० 
श्द-प्रीक्ृष्णडण्ड ४० 
१४-युसुम-सरोपर ४१ 


१५-मानदी ग्ग, पाठ 

महल (गोवर्धन ) ५१ 
१६-चे द्रसरोवर ४६ 
3७-गोपरल्मवन्‌ ( डीग ) ५६ 


शठ 
१८-रेयमर्मरए ( दाग ) ४७ 
९-भोजषारी ॥ 
२०-भीटारलीजी ( राधाभी ) 

षा मदर ( यरतप्ना) ५६ 
र१-राथागोगलनीश्य मद्र 


(मेमषेवर ) ७ 
रेर-जपपूर-नेरेमका मन्दिर 

( गर्ना) ५७ 
२३-प्रेमएरोवर ६० 
रे४-नदगोविक्रा एक रश्य॒ ६१ 
ग्द्~नयापङुण्ड ७० 
२६-अप्रपार ७९ 

धृन्दावन्‌ 

६७-पूदावनक्षा एक द्व ७० 
रे८~फारीदद ७७ 
२९-युगल्षाट ७० 


२३०-मदनमोऽनजीश्ना मन्दिर ७१ 
२१-भीयुगन्किदोरीजीका 


मह्दिर ७१ 
३२-भीश्रीरापारछमनीकी 

शश्च ५२ 
३ २-प्रीषेरि विशरीजीकां 

मद्र ७२ 


{° 


पृष्ठ 
३४-सेवाङ्ुञ्च ७३ 
३५-शाद्गिहारीलालजीका 

मदर ७४ 
३६-निथिवन ७४ 
३७-भरीराधारमणजीका 

मद्र ७4 
३८-भ्रीराधारमणजीकी घ्ोकी ७५ 
३९-पसमण्डल ७६ 
४० -श्रीगोपीनायजीकी सदी ७६ 
४१-गोडुलनन्दमन्दिर, 

अीरघायिनोदजी ७७ 
४र-यशीवर ७७ 
भद-श्रीगोपेश्वर मदादेव ७८ 
४४-लालवाूकरा मन्दिर ७८ 


४५-धीरगनायजीका मन्दिर ७९ 
४६-्ाम गुदड़ीः यमुना-चदाव ८२ 


पृष्ठ 
४७-यमुना पुलिन ८२ 
४८-श्रीगोवि-ददेवजीका मन्दिर ८३ 
४९-शरीगोनिन्ददेवजीकी री 


( जयपुर ) ८३ 
८०-सादजर्शेपुरवाली रानीरा 

मद्र ८ 
६१-केरीषार ८६ 
र्-चीरधाट ८७ 
५२-मानघरोवर ८७ 

कि 

८४-श्रीपल्देवजीकी सकी ८८ 
५५-श्षीरखागर्‌ ८९ 

---न धपे 


५६-उकुरानीधाट ( गोङकर ) ८९ 


उपोदुघात 
राघानायसमारम्मां शीमिष्णुस्यामिमध्यमाम्‌ । 
असदाचार्मपर्यन्वां वन्दे शुरपरम्पराम्‌ ॥ 
यष प्रनमण्डल गोग मूमि है! गो, गोप, गोपीगण परिवटित, 
भखण्डरह्माण्डनायर, फदर्पकोटिटारण्य,सुरटीगदननिरत कमय्द्‌2- 
खोचन धयामसुदर श्रष्णकी जो शीर ससी लीरार्‌ गोयेकधाममे 
शती श्ये ओर षी ष्टी टय इ ्रनमण्डमे कोती ४ फसा 
बरहपैपरतपुराण, गममदिता आदि प्र-योपरे उन्लेख है । सीते धसी 
म्ानुमावने मयुराकी मक्तावो देखकर वषा पा कि-- 
मभुरेति व्रिवर्णीय तयीतोऽपि गरीयसी । 
मा धावति पर बरद दा तामचुषापति॥। 
मधुरा ये तीन वर्णं वेद्नरीसे भी अधिकः ४ क्योकि 
वेद्नयी तो ब्र पीठे दोदती है भौर्‌ व्र मयुराे पीछे रौढता 
है । एवः मक्तशिरोमणि महातमा बूदापनवी अदौकिकताको निरखकर्‌ 
कष्ट उठे कि-- 
येददुमे मृगय मा इन्द्पिपिने डमे दमे प्य । 
यद्रजवनिता भूलाश्ुतिभिरिरैवावलो ङिति नदा ॥ 


श | 
वेदग्पी वृक्षम ब्रम मन दे, किन्तु वृन्दार वैद 
पेम देख ठे, क्योकि शरुतियेनि नगरा बनकर यदो हीतो 
््को देवा या + महावनम एस बार दोनो माई राम-स्पाम धुदुख्न 
चल्ने-चठते न-द मटक दवारपर पर्हैच गये, दाञजी तो बडे थे 
सो देदरीको खँघकर नीचे उतर म्ये, कितु ठटे सस्वर 
उनवी दैलादेखी चोट पकड़कर नीचे उतरने ल्मे, पर 2टे 
नैके कारण धरतीतक पैर न प्च पाये, अब ऊपर मी नदी 
चद़ सकने, इससे वही व्टकने रगे ओर रोने लगे । इतने ष्टी 
कोई महातमा उधर आ निरुके ओर इक्त नजारेको दखकर गद्‌- 
गद शकर कटने खगे-- 
श्रुतिमपरे स्मृतिभपरे भारतमपरे भजन्तु भेभीवा; । 
अहमिह नन्द्‌ बन्दे यखारिन्दे पर ब्रह्म ॥ 

८ भीरघुपल्युपाभ्यायस्य ) 

सारे डर हृ कोई चरि श्रूतिको, चि कोई सरि 

कौर चदे को$ मारको मजा करै, पर हम तो ईस नन्दवाबाको 
प्रणाम करते ठै, निकी चौखटपर पल्रहम ल्टक राह । 
जिस ज्म य घुख है, यह माव है, यह प्रम है उप्त महिमाका भ्या 
वर्णन हो सकना हे ! इसीव्यि जारो उष व्यतीत हो जानेपर 
भी श्रीृष्णकी इस रीटास्यटीके दर्शन करनेको, इसी परम पायन 
रज ठेष्नेको, कठी छक चपि क्रफे भी उस मोरमुबुटालेकी 
कीवी खक दिखायी दे जाय इस आशक पूरणं करनेको दूर- 
द्र ल खख यानी त्रजमे अत्ति रहते ह ओर यकर 
~ कसते ६। कोको षरवैठे्ी दूसरोति ˆ ˆ“ 


{१ 1 
प्वदछाकी लान्माप्ते च वरस्ते) पततु एते के दरगे 
ममत ोटान्यनफि दरसन दुविधा समख पाप्र्येणो मदी घ्न 
सवता } एसी वर्ते दूर करनफते इत छेद ते निव-धक्ते निर्‌ 
यलव्याण्यत्म्‌ प्रदा करने लिपिं मेनाधा भीर्‌ वद धम्यणकर 
शीर्णे प्रद्मतित जाय) उसीने पु उदन परित णएव्‌ 
परि+ परप यष्ट पुम्नफके आकरे प्रकाशा करे धनमरछोफी 
लेशे सम्दित कियाद | प्रनके यात्री इतके भनुमार तनयौ याम 
छठी तषट वर सेने! षर्‌ यठे सजन मी न्मते एरान 
यावकाश प्यानमे प्राप्त कर मेने, पमी पूर्ण अशाष्टै। जो 
समत छरा कर्‌ इसकी मतुष्य-व्यभागुरम रन्यो सूचित करेगे, 

उनकी एपाया धन्यपाद्‌ किया जायगा जीर आगमी संच्करणमे वे 
वां गर दी जायगी । [ दम पुस्तकः समल सुदणायपिकार 
गीताप्रम, गेरपुरफे जध्यश्च महोदयो ४ । ] अते श्रीतजगजते 
प्राना ह कि यद ध्वाग्य-ुशुमा्चदि' धरीमदातजके चरणेमि 
सर्पि है, इ्तसे लेगेकरि नरिप मक्का उदय हे रीर उनका 
कल्याण हो | 
इसके चये संस्वारणमे पुन सशोपन पिपर्तन कर्‌ दिया गयादट। 
धीविष्णुम्बाभिसग्प्दाय सोम्वामी छन्मणाचारयं -- मधुरावासी 
4, 
प) 


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र श्रीनन्दनद्न्‌ 1 
1 ४४ 


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श्रीयिष्णुम्वामिने म 
व्रजकी ज्ञोकी 
व्रजाधिराजपादरपत्रयुमश्चरमन्दिरे 1 
मनोरमे मनो रमेत मे नखारिचन्दिरे ॥ 
श्वन्‌ प्रिदित इहि जदपि वार भारत-दुरि पान । 


ध रपपू्णं कण्ट वजमण्डल मन भायन॥ 
~~म्यम इयि सरनागपथं 


व्रजमरिमा 


भयवन्‌ श्रीदष्य धन्व, उ7यी सीद्‌ धयै रश्मी 
प्रकार यद भूमि भीः धप है, जहौ ये पिदुरनपति मनस्स्पे 
हयनतति षद्‌ भौर परम पित्र अतु अटित शोयट्षा, 
भिश्च रकनद्क केक फा सनुफरण म भुक्त ष्ययोषो जरदकिस 
वाद दै ज ङ्प संगगिनि ष्र्‌ शाय कष 


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त्रसकी ककिर 


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शरीचिष्णुग्वामिने नम 
रजकी स्लोकी 
व्रनाधिराजपादपद्मयुग्मलुभ्रमन्दिरे । 
मनोरमे मनो रमेत मे नखाठिचन्दिरि ॥ 
शुन प्रिदित दि जदपि चार्‌ भारव थमि पमन 1 


पै रसपूणं कमण्डरु नजमण्डल मन-भापन ॥ 
--स्य० कवि सत्यनारायण 


व्रजमहिमा 


भगवान्‌ श्रीकृष्ण धय, उनकी टीरार्दू घय मौर इषी 
भ्रकार प्ट भूमि भी धय है, ज्यौ वे तरिमुपनपति मानररूपमे 
शपतर्ति इए शौर परम पि अतुपम अदीकिक रीय फी, 
भिनकी एक-एक शोकीषफा अनुकरण भो माहुक हदयोको अलौकिक 
भान-द ६ ष्क अवनरित हृष्‌ भान पच सदस 


५ 


श्य्‌ यजक्ी सकी 


पसे उपर इए । उक कौीर्वि-गाने साध-साय उष 
मूषण्डरी भी मदिमाका सर्द यान शिया जता दै गै 
रनवो मस्तकपट धारण करके प्थि अमेन शतश छोग 

्ः! यदे बदे सन्म छाल अपन सममत सु्व-सीमा्यको खत प्रह 
यछ भा ये भौर जके टक मोगमौगकर उदर पोप करल 
दौ अपने जायको धन्य समञ्च ] यट नही, भनक मक ददप तो 
यक्षे दुवेकि चपि तरता कसते ९, मग शफे घि प्रथन 
यस्ते ६ । बोडे चाय निदगिदाक्र कने ६-- 


मो कव फरिदो मन मेते । 

कर क्रया हरा गुजनरो, जन महि बसेर । 

यज्रा्षिनकफे र पड अर धर प्र छा महर ॥ 

भूख गे तम मोगि खाद, गिन! न सौहच-सवंरे । 

रेमी आसर "व्यामः दी पूजा मेरे र्गोप न खेरो ॥ 

यष्ट क्या बात हः $6 भूमिम एसा पौन सा आक्पणदहे 
जो भपगरी भोर शच्छके पिरद भी भावर्थित कटल्ताहै 
भगान्‌ श्रीकृष्णने यट जम धारण किया था शौर नना प्रकरणी 
भलेकिक टदे की यीं, कया इसीलिये मक्त हदय इतते इतना 
प्रेम करते ° शं, अगरदय ष्टी यद्‌ वात दै, प केवर यष्ठौ बात 
नदीं है, इमे साय-साय सेने दगध यहः जीर भी है मि इस 
भूमिको सगवान्‌ श्रीकृष्ण गोलोके यदौ खये ये | जैसे बर 
देवानदेनता, ऋषि मुनि, श्रुति आदिने आकर गोप गोपिका्ोका 
जम अर्ण किया या, उसी प्रकार ब्रन मूमि मी श्ीगोटोक धामसे 


चजमहिमा द 


आयी थी, इस कारण इसकी महिमा पिशेष हे । पुराणोकि अनुसार 
यह्‌ भूमि सृष्टि आर प्रख्यौ व्यव्यासे वार दै । ऋम्बेदके 
विष्णसूच्छ्रे एक ऋचा व्रनके सम्ब धरे मिलती दै, जो इस प्रकार है-- 


ता वा बास्तून्युरमति गमध्यै 

यत्र गावो मूरिश््धा अयासं. । 
अत्राह तदुरुगायस्य चृष्णः 

परम पदमवभाति मूरि इति ॥ 


सा तानि वा युग्यो रामङृप्णयोर्मस्तूनि रम्यस्यानानि 
गमध्यै गन्तुम्‌ उक्मति उष्मः कामयामहे नतु त्र गन्तु 
प्रभगामः । यप्र ( बृन्दावने ) बास्तुपु भूिमृङ्गा गाषः 
अयामः सञ्चरन्ति अगर भू्ेकि अद निधित तद्‌ गोरोरास्य 
परम पद भूरि अत्यन्त मुख्यम्‌ उरभिहुमिरमीयते स्तूयत 
श्युरुगायस्तख ध्ष्णः यृष्णर्यादवस्य पदमयभाति प्रकाशत इति। 
अर्धात्‌ इद्र स्तुति फते है कि धटे मगयनू श्रीतटराम जर 
श्रीकृष्ण | भापकरे षै अति रमणीक स्यान है ] उन्न हमे जानेकी 
शच्या फते ठि, पर जा नक्ष सकने ! कारण-- 
अदो मधुपुरी धन्या वैदण्डाच गरीयसी । 
चिना छृष्प्रषादेन क्षणमेक न तिति ॥ 
म्द मधुपुरी घय अर वैडुण्टतसे भी प्रेण है, क्योकि दैषुण्ठमे 
तो मतुष्य भपने पपार पद्ेच सका है, प्र यहो शरषष्णफी 
पाके चिना कोर णक क्षण मी नदी व्दर सक्ना।' जघ (्रजमे) बड़े 


१९ प्रजक्री सोक 


सीमेवाटी गये चली है । यदूकुरमे अनार विनेय, वद्य (बहत 
ग्रासे णये जानयञि ) मगसन्‌ यृष्णिरय गेोन्येक नामस यष्ट परम 
पद (ब्रन ) निधित ही मूकमेश्रकदित क्षे रदा दै ।" सद्भि 
सतया, त्रजभूमिकी बा फोन स्यान फट सना द र मास्त 
अनेक तीर्षस्यान ६, पक्का मादास्य 2, मगन अीस्गौर 
भी लमस्यान 2, पर यङ्ग गतत क्षी वुठ निरी ह! आनन्द 
टी अनोखा टै! यके नमत्पराम, मद-मद्धिर, यन-उपयन, 
लता बुव जटिकी भनुपम शोमा भिन्न भिन्न ऋतुममे मिनन मिन 
प्रसरसे देखनेको पिरत है 1 अपनी जमभूमिते मभीमो प्रेम देता 
है, प्रिर वह चि खु रपैडहर शे अथग घुर स्यान, बद 
जमम्थान है, यद पचार षी उस्रि प्रति प्रम ्टोनेके घ्ि 
पया ह | रीटियि भगगनूकरा भी इसे प्रप होना स्वाभाश्रिक है | 
इससे धरीमागवतमे न्म है "वण मगान्‌ यतर नित्य सवहितो 
रि 1 उप्त पुण्यभूमिको री-सहो तै्षणिक छटाके दर्शने 
नपि--उस टकर ल्यि जिमतरा एक क्षा) उत्त पपर युपर, 
उप्त जगद्गुन्का, उतकी दोगिकेन्पमे की ग्थी भदटीरिर 
छीगर्ओंा अदूमुत प्रफारते स्मषए्ण करती, अनुभय भान दे देती 
शौर मिनि मन मादस्को सरथा वच्छ केम सायन प्रदानं 
करती है--माबुक भक्त तरमा करते द इमे आधव हो क्या है! 
नैस ओभा भी न होती, प्राचीन टीटाचिह भी न भिन्ते 
येते, तो भो केयर साक्षात्‌ परतरा यौ क्र होनेके ना 
ही यह स्यान आज हमारे च्वि त्ष धा, यह मूमि हमरि रिपे 
तीर्यं थी, जर्टकी परायन रजको जअम्ञ उद्भवे अपने मस्तकः 


यजमहिमा १५ 


घारण किया था, वे त्रनप्रसी भी दर्शनीय थे जिनके धू्नकि 
माग्यक्ी सराहना कते-करते मक्त सूरदाप्तके शब्दाम बडे-बदे 
देवता आर उनकी जून खति ये, क्योकि उनके बचे भगवान्‌ 
अवतत दर थे] 


वरन-वापी-पटतर कोड नादीं। 
जहम) समक, सिय) ध्यान न पारत; 

इनकी जँढन ठेठे साह ॥ 
हलधर की, छाक जेपत सग, 

मीटौ रगत सराहत जादी । 
'द्रटामः प्रयु जो पिखम्भर, 

सो मालनके कौर अधाही॥ 


ततर किर हयँ नो अनत दर्खनीय स्थान टै, अनन्त सुन्दर 
सट मदिद्र, बन-उपमन, सर-सरोर है, जो भपनी श्योभापिेयक्े 
च्य दर्शनीय है ओर पामनताफरे स्यि भी दशनीय है] समके 
साय अपना भपना इतिहास है ! यथपि मुसटमानेकि आक्रमण 
पर-आक्मण होनेतसे बजरी सम्पदा नषप्राय द्यो यथी, कर प्रसिद्ध 
स्थानेकि चितक मिट गये, मदद स्थानपर मसतनिदे खड़ी हो 
मयी, तयाव धरमव्राणजर्ोकी चेस्रे बुठ स्यानोरौ रक्षा तथा 
ओर्णेद्रार नेसे वर्दी जो भी दुठ वची-खुची शोभा आज है, 
वमी ˆ“ "९ भरोकिकिदहीहे। 





तरज-नामका कारण ओर स्थानःविस्तार 
जिस स्वानमे पु अगिका हौ उसे बन कते ह । गयग-- 
ध्रजन्ति अस्मिन्‌ जना श्रीदृष्प्राप्यषमिनि बन , भयात्‌ इत 
श्रानम श्रीकृष्णसणयानूसे मिलने न्यि जीय जने $, इमल्यि यष 
व्रज है | पह व्रजमूमि मधुर ओर दृदायनफे भस्त पास चौरा 
योपम कटी इई मानी जाना है) पराहपुराण ( म० भ० १७ 
ख० ) मे इमसा विलर अस्सी कोन माना गया है ! सैमे मि-- 
पतिर्यो गनानां च मायूर मम मण्डलम्‌ । 
यु्रतत नर सला भुच्यतं प्वेपातिङ ग 
अर्यात्‌ मेरा मभु मण्टट चीत योजन ( जस्स कोस ) ष, 
निमकते यत्तत्र स्विति तीयो स्नान करते मनुष्य सव पातकसि 
मुक्त हो जाना है । मधुरे चार कोरोरो भिलनेसे चौरत्ा कोष 
हने £} पद ैडपर भश्वमेधका फठ निशवय प्रा ता ए । 
यल-उपवन 
यँ यारह महावनं ओर अनेक +" ५, \ह-- 
मटापन--१ भध" 
1 कामन, ६ सदिव ° 
वन, १० वेटपन, १ 
% पदे पदेऽ्वमे 
र शरन्छवन तीन 
पाठ, ३ मधुदाते ठीन 


आगे अवेगा । 
भिग्नीमे अता) 


अज-नामका कारण ओर स्यान विस्तार १७ 


उपयन--१ गोकुल, २ मोवतन, २ बरसाना, ° नन्दो 

, ५ संकेत, & परममन्ध, ७ अडीग, ८ दोषाय, ° माट, १० 

, णद्चगाम, ११ सेटवन १२ श्रीबुण्ड, १३ नधर्ववन, १४ परसोी, 

१५ विच्छ, १६ वच्छवन, १७ आदिवत्री, १८ करद, १९. 

आजनोखर, २० पित्तायो, २१ कोकिटायन, २२ दधिपम, २३ 

फोटवन, २४ राव, २५ सुरभीर ( सरीर ), २६ सुन्नाटयी 
आदि नेक उपवन है 1 

सरिता 

वरजमण्डलमे पटे कई सरिति यी, पर अव युना, कृष्ण 

गङ्गा, मानसीगङ्गा ओर चरणगक्गा--ये चार ही नदियों भ्रकट है| 

सरखती प्रकट नहीं ह । मथुरामे जरौ पहले सरखती बहती थीं 

वर्य अब सरखती-नाटा नामसे सथान प्रमिद्ध हं ओौर जरौ सरम्वती 

यपुनाजीपे मिखती थी, वर सरखती-सन्नम तीरं अय भी प्रसिद्ध हे 1 


सेयर 


सरोयर भच ै--मानस्तरोवर, इसमरोवर, पानसरोपर, 
च्रसरोवर ओर्‌ प्रमसरोवर । 


इसके सिवा मर-मन्दिर, दण्ड इत्यादि अगणित स्यान ह | 
पर्व॑त 


पेन पोच है-गोव्नः यरसालु, नन्दी, चरणपहाडी, 
दूसरी चरणपहाडी ! 


वदन 
्र० दात 2~- 


तरज-नामका कारण अर खानविस्तार 

जिम म्थानमे प्च अपरिक हो उसे नज कहते ह । अया-- 
श्रजिति अलिन्‌ जना रीरषणप्रापयर्थमिति ब्रज › अर्थात्‌ इ 
परातर श्ीहृष्णमगान्‌मे मिनत व्यि जीप जति &, इट्य य 
ज्ज हे । य्‌ त्रमूमि मधुर ओर दृन्दायनके आस्त पाम चौरा 
कोरे फेल ह मानी जाती हे! वगाहपुराण ( म० म० १५ 
अ० ) मे इतका वरिम्ता अस्मी कोक माना गया है । जते वि~ 

पिदयनिर्योजनागा च मावुर्‌ ममं मण्डम्‌ । 
य्रतम नर स्नात्वा भन्ये सर्वपा्ै, 1 

अर्यात्‌ मे मुरा मण्ड वीम योनन ( स्मो को ) 2, 
जिसके यद तत ल्यित तीर्थम सान करनेसे मलुप्य सन पातकोसि 
मुक्त हो जाता दै । मुके चार कोरसोो मिलनेसै चोरासी कोस 
हेते & । पैढ पैडपर भदपमेया फल निश्चय प्रपत ह्येता है । 

धनं उपवन 

यट बारह महावन ओर अनेक उपनन है जो स्स प्रवर दै-- 

महावरन--१ मधुयन, २ ताटयन, ३ वकुमुदयन, ४ बहेलतन, 
५ कामव्रन, £ सदिरवन, ७ वृदायन, { ८ भ्रवन, ० भण्डीर- 
वन, १० वेखपन, ११ लोहयन, १२ सटावन । 

र प पऽपमयाना कठ प्ररो छमन्‌ 1 - देल मी णठ दे ॥ 

ग हदापन तीन १ कामवने आठ पाठ, २ गोपधनके भत्र 


सः < मधुराणि सीन केषर वनमाने विदमान ड । इको मितन्‌ 


अगि अधिग । तरन्दावनमे माय दा &। इसे यई वेन्वनके पीठ भी 
भिनतीम माता | 


व्ञज-नामका कारण सार स्थान विस्तार १९७ 


उपपन--१ गेकरुट, २ गोवणैन, २ बरसाना, ¢ नन्दगेगि, 
५ सकेन, ६ परममन्ट, ७ अडीग, < शेषङषयी, ० मा १० 
अञ्चगाम, ११ खेख्वन, १२ श्रीबुण्ड, १३ गन्धर्ववन, ९४ परसौयी, 
१५ विष्ट, १६ बच्छवन, ४७ आदिवद्री, १८ करटा, १९ 
आजनोखर्‌, २० पिसायो, २ १ कोकिटावन, २२ दधिवन, २३ 
कोटवन, २४ राव, २५ सुरभीर ८ छरीर ), २६ मुञ्जव्यी 
आदि अनेक उपवन है 1 

सरिता 

वरनमण्डसमे पटले कईं सरिता यीं, प्र अब्र यमुना, कृष्ण 
महा, मानसीगङ्ञा ओर चरणगङ्गा--ये चार ही नदिय प्रकट है । 
सरखती प्रकट नटी है । मथुरामे जँ पहले मरम्बती बहती थीं 
परौ अव सरखती नाटा नामते स्यान प्रसिद्ध टै ओर जँ सरखती 
यमुनाजीमें मिटती वी, दयँ सरखतो-सद्घम तीयं अव भौ प्रसिद्ध हं | 


सतेवर 


सपर पोच है--मानसरोपर, हससरोवर, पानसरोपर, 
च द्रसरोदर शोर ममसरोबर । 


गमक सिवा मठ-मन्दिर, कुण्ड इत्यादि अगणित ्यान है | 
पवेत 
पैन पोच दै--गोपर्धन, रसान, नन्दीरार, चरणपषाी, 
दूसरी चरणपद्ाडी । 
"इध 


मधुर 
मुरश्टी तेतिहात्तिकना 

जहो नाजर मथुरा ट वट पहले न वा, रस समध 
जौ मन्टपुरा या केदवरदेवनीका मदिर ८ वशँ बस्नी थी तरी 
श्राचीन बस्नु तानाह) परमत, नदी जर्‌ मूमि। प्राचीन 
व्हतुण्यातोमेष्टष्ठो गयौया न्ट कर दी गी आद उनके म्पान्‌ 
पर नयी ठन मयीं या पुरानीका जीणद्भार हो गया । सारस य 
ह दि आचानता नेष्ट लेकर गीताया निर भाक्त निर 
जायां । यी चान मयुरके सम्बररमे मी है | मधुरापर ह्ण, श 
बदर, जेन, सुपतठ्मान आदि सका हमला ओर आपिपत्य होता 
रषा ह ण्व जपतर-भपे भापरिपयमे स्वने पुगनी गभा नकी 
पौर अपनी नयी कीरिं श्यापिति की, इस भवार प्राचीनता भन्न 
होती चटी गयी ! धर्मा न्तेष्छेनि तीन गर उसमे कले-भम भी 
किया, पो उनके यष्ट कारियोको मारना सवाव है जीर 
भधुर-सटश पुण्यनम तीर्थके काकिका कट कएना उने बहिश्च 
परहैवनिको काफी समन्ना था | उख क्छे-मामनो कराकर नामसे 
अय भी मधुरव्ी याद धरस्नेह। यर्होपर सञ्पं भी उद 
अदन्क्‌ कः हए--येडाया, सेपरिया, सपुरः होकर, भरतपुर 
आदि । इ अ्रकार मधुरा ससे तीर्थरूपसे परिरक्षण है, वैसे यद 
सपना रेनिद्धामिक मद ची ग्रिेष रखनी है । इसके टीलेमि 
सैडहनेमि, भृमि, कुमे, यमुनाम वडौ बडा महस्ववी रेतिदामिक 
उद्‌ उपक ह ह, गो यकि 'प्राचीन-स्तु-सप्रह्ाल्य ( म्य 


मथुरा र 


जियम ) म रक्खी इई ह । कुंड बाहर भी ची गथाहै] मन्‌ 
१०१७ ३० मे महमूद गनमवीने बस्त दिननफ मयुर ओर उसके 
मास-पास्फे धृन्दावन भआदिको स्वूत ही नष्ट-षष्ट किया | पिरि 
मन्‌ १५०० ई० में सुटतान धिकन्दर ठोदीने मधुराफा सर्वनाश 
पि । सन्‌ १६६० ई० म ओरक्नजेवने मथुरा आर त्रजका नार 
किया | सन्‌ १७५७ ई० मे भहमदगाह अन्दाखीन होटीके 
त्यौहारपर नाच रमे इक्र हण मधुरा ओर उसके आसपासकरे 
सी, पुरुप, बाख्कः बुदूर्दोका. सहार करिया । उसे प्रकार युर" 
सवेदा दूसरोकि भाक्रमण दी सदती चली आयी है । 
जस्तु, सन्‌ १८०३ ई० मे यँ अग्रेजी राभ्य स्थापिते हभ । 
स्थान-परि्य 
दिन्दु धर्मन्योमिं मथुराकी वी महिमा हे । अयैवेदकी 
गोपार्तापिनीमे टला ट-- 
मथ्यते तु जस्ये बदन्नानेन येन वा । 
तत्सारभूत यदयखां मथुरा सा निगयते ॥ 
अर्यात्‌ जिस ब्रह्मान शय भक्तियोगसे सारा जगत्‌ मथा 
जाता हं यानी क्षानी ओर मर्तोकरा ससार ख्यो नाता ह, वष 
सारभूत ज्ञान ओर मक्ति जिसमे सदा पवमान रहते है, बह 
युस" कसती है । 
प्रपुराणमे भगगनूका वचन ह-- 
अदो म जानन्ति नरा दुराशया" 
पुरी मदीया परमा सनावनीम्‌ 


क, 


२९ यजत ॑की 
मुरेननमिनद्रभुमीद्धनम्तेगं 
मनोरमां वां मधुं परातिम्‌ ॥ 

श्य 
अपात्‌ श्दु्टध्यये रोग मेदी उम परम न्दर सनातनं 
मगुरा-गमगीसे नी जानते, निस सुरेद्र, नगे तया मुनीनेनि 
स्वृतिर्कीषैथौरजोमेर ए यस्स ४४ मयुर आदि-दाराद 
भूलेश्वर-पर कदटयनी ह } मयुर चा ओर चार शिपणन्दिर 
है-पाधिमन भूनेदयरपर, पू परिप्पठेदवरफा, दकियये सोर 
का लौर उत्से गोसर्ग 1 चार दिशामि म्वित दीनेके कारण 
शिपजौको मथुरा योनय ग्रहने ॐ 1 मानिक चकमे मीछ- 
साराद भार श्वेत-चारादवैः दर पिदाठ मन्दिर दै शरीक्ष्णके 
अीम नामे श्रीकेदायदेवभीशी पूति स्पापित फी धी, पर 
सरीराजेःवे काटे वह्‌ "रन धाममे पवर दी गयी | भीरगरेनने 
मदििरको वोड डया घौर उसे स्थानम मसमिद खदी कर दी। 
वादम्‌ उस मपजिदफे पीछे दृमरः केशयदरेयजीतद्र मन्दिर न गया 
है । प्राचीन वेदाम-मदरके स्थनको (ेरम-कटरा कते के { 
एुदाड नेमे य्दीपर बटत-सी फतिष्टासिक वस्ते प्रा इ शो । 
मन्दिरे पाति दक्षिणौ शोर पेतग-कृण्ड हं, मो देखने यहे 
घन्दर तो नदी, पर बेहत शार ह } उसमे भीतर इतने बडे-वड़ 
दाद्यनं &, रनम जाते मरषयं वैठ सपने है ओर दुण्डके बादग्मे 
छठ मादन भी नदो | इसमे जख प्राय सूष जाया करता है । दीक 
षास वतमान कृष्ण-नममूमिक्य मन्दिर है ( वास्तपिक कृष्ण-नम- 








१०२२ 


श्वरनाय ( मधुरा ) 


भूतैः 


शरीः 








4 


सकद, 
रः 


श 


4 


ॐ, 


मीः 


र 


1 


० 


( 
६ 





०२२ 


शीर्ेवस्नाय मद्देद ( मधुरा ) 


मयुरा ग्द 


, मूषि स्यानपर्‌ तो अीरगञ्क्क मततनिद ह ); निम देवकी 
¦ चघुटेक्जीकी मूर्तिर्या है । उक्त खानको मन्ठपुरा भी कडते है । इसी 
। स्यानमे सके चागूर, सुष्टिक, वृ, इल, तोल आदि श्रमिद 
 मह्ठ रहए कले ये ! यज्छं एक पुराना गह्भानीय मन्दिर मी दै 
भौर उतत भातं मूते्र महदियजीके पास कङ्कारो-टीरेपर 
कद्धास-देवी ८ कसतकाटी ) का मन्दिर हे! कद्ाटी-दील्मे भी 
खोदनेसे अनेकः वस्तु प्रा हई यी । यह कद्कानी वट वनयी 
जाती है, जिसे देक्कीकौ कन्या समञ्चर कमने मारना चादा था, 
पर भो उसके हायते द्टरर आकाशम चली गी भी 1 इससे 
खगे बटमद्वकरुण्ड है सौर ब्रलभद्र॒ तयां जगनायजीका मन्दिर दै । 
इस ओर कु्ओंका नट वड़ा स्वास््यफर हं । यहौके कुअमि 
न्द्रासां शददरको जर दिया जाता है 1 
ओर भी बहत-से नवीन मन्दिर रदै। ये मय नगक वाहृ 
है! समते शरेष्ठ, इुदर, सेमा-श्वद्वारका जलौ अच्छ आनन्द 
रहता है, बद भीदारकाधीशका मन्दिर है । यक नेट गोडुद्दाप्र 
पारण्वनीरां बनवाया इदे, जो कि ग्वावियर-गथ्यके खजाची 
ये आर पद्‌ करोदकी सम्पर्के मालिक ये ! यह मन्दिर तृतीय 
पीसपिपति कको मोग्वामिरेकि घुपुर्दं हे । स्सके प्व्चमे 
ल्पि बहते गग उ्मेडृए है जौरर्भेट भी बटूत अत्ीष्टं। 
इसमे उत्सव बड़त शेते है ओर नित्य सधु प्रसाद पे षै 
अन्नञ्कटके जसरपर जारो ब्राह्मण ओर अन्य सेयकनन श्रनाद 
पते दै भीर सारमसे एक वार मयुर परिमण्डटी मो हो 
माद ५“ 7 प्रान द्वारक पाठे माखन 


२४ वजकयै व्री 


मिश्रा आर रात्रिको यनक पे मोदनभोगका प्रसाद ए | 
दसानिवोको नडा जाता है ! ° मदिरे सरछत-पाठगा भै 
ह । इमे अयुदरन्कि आर्‌ द्योमियोपैधिक दो चिकितसाटय म॑ 
ह । श्रामदवाग्तङी कथा भी नित दिनसे मगान्‌ विरमे ६ 
उसी दिनसे निय प्रात काठ होती है । रामम चार मनुष्य नाम 
कीर्ते कएने हं } शयनके समय प्रतिदिन बहत-तै साघु नाम 
कीतन करते & । गंयनफे अनन्तर श्रीमद्धागषका पठ भ 
नियता है । इस प्रकार दर्मिरा हरिस्मरण ष्टी होना रहत 
्टे। प्रबध-ग्यतरस्या भो बहुत सुद्र हे। यष्ट मदिर त 
१८५७० पिभ बना था} बा्तवमे यह मधुराकी शोमा है) 
श्रोद्ास्काधीशजीक। चतुर्भुजौ बढी दी अद्भुत भषज है। यर्का 
शृङ्गार ओर पूजा-पद्रति बड़ी दी अलौकिकि है । श्रीषन्कभ- 
सम्प्रदायके अनुसार यद्षौकी सेवा-पूजा है । भगवान केवल 
भोग-रागके समय टौ दर्चन ्टोते हे, ओर मन्दिरोकी मनि सदा 
खुले मही रहते 1 

श्रीमोविन्ददेवजीका मन्दिर-यदय रामगढ़निगासी सेठ शरु- 
सक्षायमटजी पोरारका बनवाया इभा है । इसमे भी उत्सव बहत 
अच्छे होतें ओर भगवा्फी मृतिं बडी घुन्दर ष्टे | विधां 
ओर साघु प्रतिदिन मोजन क्एते है! इस्मी भी ण्क न्दर 
संसत पाददण्डा है ओर अम्यागर्तोको चने भी वटे है । 
शरीकिशोरीरमणजीका मन्दिर--खर्गाय किंरोरीवाठ्ना ्वैधरका 


यनवाया नआ हं 1] इवे आधिपत्ये फिरोरीरमण गन्स 
स्कृ है, जो ते उन्नत दशमे है । इतत मदिरे भी 


मधुरा २५ 
उत्सव वहत ददी सुन्दर होते दै 1 इसमे सोने-चौदीक्छ वना हभ 


हिढोला अटत विचित्र ह } इसमे भी विचार्या, साघु नित्य भोजन 
करते है, कया ओर कीर्तन होते हें । 


शोचर्धननाथजीका मन्दिर-समे पत्यरका काम बहत 

। ही सुन्दर दै, निस्ते फोटो लेनेको युरोपियन आया करने है । 
उदयपुरबाटी रानीका मदनमोहनजीक्ा मदिर--द्सका भी प्रवन्ध 
अच्छा हे । अभ्यागोको मोजन भौर चने मिर्ते है । पिहारीजीका 
मन्दिर इसे मऊके णक सेटने बनवाया हे । आजकछ यह 

मन्दिर श्रीनाथजीकी ट हं । इसमे श्रीनाथ भण्डार स्थापित हं । 

मदनमोहनजीका मन्दिर--यह गमगढके रहनेगले अनन्तराम 
सेठका ननयाया हआ हे ) वडा विशार है } राधेदयामजीका 

मन्दिर --यह उछायवाटी रानी स्यामर्ुपरिका बनवाया हज द्रं । 

असक्ुण्डाघाटपर हलुमानजी, दरसिंहजी, गरा्जी, गणेशजीके 

मन्दिर ह । उससे उत्तरकी तरफ प्राचीन पिध्रामधाट था | मुसठ- 

मानी समयमे षह शर्ट कर दिया गया आर एक मखदूम साहत्रने 

मस॒जिदर बना दी । उससे आगे राजा भरतपुरकी वेटी 

जिसका फाटक व दरवाना वहत ष्टी घुन्दर है 1 इते अगे 

सेठ रक्मीचन्दजीकौ येत हे । इसके सामने श्रीद्ारकाधीशाजीका 

व 


ये पोच मन्दिर स्वामीषाटपर द! इका दूरा नाम बलुदबषार 
भी । खनते ६ शी रास्तेते बदुदेवजी शरीडष्णक़ो मयुरासे मोुल ठे गये 
ये द मथुरे परामने दीदि इखने इसको खामुदषाट भौ प्रजमापाम 


क्म ˆ“ [ष यमुना-मन्दिर द, जिसकी दथा अच्छी नदी टे, 


६ मजको श्रौषे 


पूर्यत मदिर ह ओग टके रा गर्थरमे मानिक 
यारादजीकै दो मन्दिरं & । द्वरकाधीरके मन्दित्से भगे रपा 
कासजीख मन्दिर है । वद निम्बाकंसम्मदायक्य है | पुरमा 
नरेशे शर इतके भदन्त ट । उसे भागे धमह्प्युमी 
मेरे है । उठे भागे रिध्राम या वितरातनाट ह । मधुरम यी 
प्रयान तीय टै । नित्य प्रात काठ चीर सायका यकौ श्रीपं 
जीपी आसती हज कती है ! अष्ठी श्चोमा होती है | श्रद्ण 
भगगरनूते कफो मारकर यो मिथाम च्या या इतलिये दख 
पिश्रामघाट नाम दृआ या सासाछ्कि पथिको पिशरान्ति मिरी 
द इमे पश्राम या शिश्रातषाट नाम थना € । ईसं अग 
रतियायाले महागज इक्यापसी मन सोने चके ये शौर यष्ट सोना 
ब्रज तटा था। तीन मन सोनेसे फााकै मष्टाराज मी तते भरे । 
इस प्रकार पुवर्णकी ये दो ब्दी ुटं टो चुकी & । जयपुर ३ 
रापेति मदाररजोकी तुले भी द ओर त्रे तुदा प्ट चनी हर भी 
ॐ { वि्रामघादपर षृष्णवरल्देवजा, राथादामोदरजी, मुरखमनोक्ष्जी, 
उस्मोनारायण, अनपूर्णा, शिद्नाथ, दनुभान्‌, धर्मराज, गोवर्धनाय 
भादिके कद येटे-छेटे मदिर टं । यक्टौर चैत्र शुका धन्रीमो यपुना. 
जीके जमनिनि, श्रढोठका बहत उत्तम मेद्य ना है | यदे 
प्रिध्रात्ते अगे समी धर्योपर होना है । दूसरा मेरा यमद्वितीया 

योता है । तीसरा कार्तिक दश दु्रामीको होता दे, जत्र 
शरीरम षृष्ण वंततरो मारकर जपने सखाजकि अरम साय िश्रन्त 

पर प्राते है । मधुरां दो स्मान है । एक दक्षिणम भुगनेभपर, 

दूमण उत्तरं द्राशवोषपर । धुवशनेगपर जने शर ( यु) का 


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भीदारकाधीश्चजीका मन्दिर ( मधुरा ) १५: 


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मथ्य $ 


चेशाम ओर विशरामस्यानिक पिण्डदान पिश्रामघादपर्‌, दभा्धमे- 
पर जानेवा्ोका चक्रतीर्यपर होता है ! 
पिश्ान्तसे पीडे वाजारमे गतश्रमनारायणजीका मन्दिर है । 
[यह्‌ प्राणनायजी दास्रीफा बनवाया हआ श्रीरामानुजसम्प्रदायका 
द । इषे न्यय-निरहा्य गोच को इए दै । उससे पे पुराना 
`गतश्रमनारयणका मन्दिर भी हे । यहं मोपालजीका भी प्राचीन 
मन्दिर दै । उससे आगे कंसखार्‌ ह । यँ सम्जीमण्डी है भौर 
पण्डित पषत्रपाट रार्माका बनवाया दज व्रयघर ह 1 द्षसे 
आगे सनधर॒सुदरहछा है जिसमे पहले श्रीपउभाचार्थके सातो 
स्वष्प विराजते ये । 
पालीवाठ बोदराके वनवाये हर्‌ पुराना, राधाकृष्ण, 
दाजी, विजयगेमिद, गोर्भननाय आदिके मन्दिर है । रामजी 
द्रम श्रीरामजीका मन्दिर ट । वहीं श्रीगेोपारजीकी अष्टसुमी 
मूर्ति है, जिसमे चोबीपत आगतरयोको मूर्वियोके दर्शन ने ६1 
रामनवमीके दिन यहो तहत वड़ा मेरा होता हं । इसीके पाम 
खीठमठ्की गरीमे स्वामी कीठजी महारजकी गुफा है| ये त 
प्ैचे दर्‌ महात्मा ्ो गये है । दृन््ेने अपने तपोवरै धट 
की मुसच्मानेसे रक्षा की धी 1 इनका चेणीमायव्र; सधम 
( श्रीसमावुजसमप्रदायका ) है जो प्रयागा £ ‡ द 
चौतरापर त॒र्तीनीका यामद्य है अर पनाय टु 1 
गोवर्धन आकर्‌ प्रयम रात्रिम शीनायनी यद शद 
अम मेवा जरे ट) सगे च दयी मदन 
का मद्दिरै, जो राना पटनीमव्याने कदस गुन द. ~. 
॥ श 


०८ यज सथ 


मन्दिर ९ निर्न छवणाषुरको ८म्कः मयुएकी सश 
स्सके पान अगोपाल्मीक मन्दिर है गै ५२ 
सम्पदायका ई । लेट दरवान पाक्त कंसनिकःद्नका “ 
टै येभ्रत्‌ भी रमना पयरये ई! 


इते आमे चन्कर दाउजीकर मदिर € 1 ग्लो र 
पद्मनामनीमा मन्दिर । य भौ वनाम प्रये ह 
दोशमानास गोवीनायनीक मन्दिर ह । शसते भी अभ्यागत भो । 
करने ह । ध्रीयामण्डीमे सीतारामजां ओर्‌ जानकी गवरनर 
मद्दिर है, इनमे मी अच्छे उरसः होने । ये दोनो मह्दिर तर्त 
अनयाये इ” & । अगि चटक दी्रिष्ुनीफा मन्दिर £ | थ 
भी पटनीमटजीका वनवाया दभा है ! वाराहपुराणे मुके जिग 
मन्दिर वर्णन द जर्‌ काल्य वेनष्ट-मष्ट दो गये ह उनम 
किनर्ेषटीको राजा पटनीमयने वननाया था तपता ककि वीरभद्र 
मन्दिरकी प्रशलतिमे टिका &ै-- 


सुविशुत यवु पराणे 
श्रीवीरमद्रेषरमन्दि पव्‌ । 
अच्श्यता कान्वश्वादयाप्त 


र्धा न्व तसटनीमलेन ॥ 
निर्माय धर्मरब्रेण भूय 

कृता पर्षि विधिपूर्वकं हि! 
वाणाङ्ननागेन्दु (१८६५) मिते च बरे 

वैाखशछवरिङ्‌(१२)सल्यतिध्यामू ॥ 


५ मधुर २९ 


& सीततखपाऽसामे मुरादेयी ओर गनापाइसेमे दाऊजीफे एक 
णका चिद है { रामदाखकी मण्डी मुरानाय भागान्‌. आर 
.युरानाय महादेवके मन्दिर दै 1 बहत प्राचीन ह । वंगाीधारपर 
यहठमाचार्य -वुरके गोस्वामिर्योके उड मदनमो्टनजी, तरे मदन- 
ग्रहनजी, दाञजी, गेक्कुरेशजीके मन्दिर दै । नगस्फे ब्ाहर धु 
गिलेपर ध्ुवजीका मन्दिर ह । टक शुवजीने पचि र्की अत्रे्ा- 
म ठ महीनैतक यष्टी कयिनि तप॒ करके भगगनको प्रसन्न किया 
।था । यदौपर शरुवजीके चरणचिद्र टै । पटले यो केवल चरण- 
चिद्र॒ ओर श्रीनिम्बाकाचार्यके पूज्य ॒श्रीरसयश्नर आर विश्ेश्यर 
श्रीशाटप्राम भी ये जो घटनायरश अन सलेबादमे ओौर उत्तीसगद- 
मै विजते ट । धुवबजीकी मूर्ति गोखामी श्रीरुडेतील्जीकी 
पपरायी हृ द । ये चरणचिह कत्रनामके स्थापन कयि द्र है । 
इसी स्यानपर निम्बा्वसम्प्रमयके जगत्मरसिद्ध श्रीकेशवकास्मीरीजी 
विराजते ये । यह स्थान निम्धार्कमम्प्रदायका दहै । केशयकारमीरी 
भीभी जडे करद्रान्‌ ओर नपखी ये 1 इन्दोनि भी मुसठमानेति 
दिन्दुर्ओकी रक्षा की थी ) सर्षिके टीरेप्र अरुन्यतीस्षहित 
सप्र्पियोके दर्शन है । यह स्थान पिष्युखामिसम्प्रदायके पिर्तोका 
दै । गङ्षाटपर गिष्णुस्ामिचश््रदायका श्रीराधा्रिहारीजीका मन्दिर 
ह । वैरागपुरामे विष्णुलामिसम्प्रदायके बरिरकोके दो मग्र है, 
इममेसे एकः नारायणदास्जीका स्य है जिसके कुरपैका जक नजर 
( दष्िदो) का निवारक हे । इससे अमे मथुरासे पथमे 
महावियादेवीका मन्दिर है जो कि बहत चे टीर्ेपर हं । इसके 
नीचे आस-पास बडा मारौ जगर था, जो मत्‌ १२५६ व्रि 


> न 
स्न न = 1 + ~य (क 


3२ धके चषि 


ह , रगे महन्वि, सतसमुदरदृप, षता, वनमदरु 
मृनेश्वग महादेव, पोनरावुण्ड, क्ञानपपी ८ इसपर मुमान्‌ कनः 
करते जनि ह, हिदि आर दिदुममाको द्रदर य 
नेना चाहिये । }, जमभूमि, केदापल्यमद्धिर ष्ण्रप उ 
कृप मदाविथा मरस्यतीनाटा, मरस्वनीदुण्ड, सरस्यतीमदिरए 
चाुण्ड, उत्तरयोधिती, गयेतीय, गेर्णस्वर महदिव, नौति 
की ममापि, सेनाधनिका धट, सरसनासगम, ददारयमेपषाः, 
अम्बया दीरा, चनी, फृषणाङ्गा, फाभिनर महादेय, सेनी, 
मौषाद, वण्टाकर्ण, सुक्तितीर्ष, कमि, बरघ्मनाट वैदुष्ठषार, 
धारापतन, घुदेववाट, भसिदुण्डा, गरादष्तेव, दारकाधीारक 
मन्दिर, मणिकर्णिकरषाट, मटाप्रसुजीकी बरैट्क, वि्रामदाद---य 
मधुराके पर्किमके स्याम छै । दर्‌ नेते कारण अरं इनमेमे उत्तर 
दकिणकरे बहुत से स्थान परिकरमाम फोड़ तने ह । वक्त, मथुरामे बडे-ब 
द्शोनीय मन्दिर ओर स्थानयेष्ठीषै थीर जेन-ठदे तो बहनषै 
भषीणक 

म्यृजियम--यट मी मुरा पिचिग स्यान है । इसे रेति- 
दासिर मरति आदि वन्तु्भोका अच्छा म॑परह है} हयौ गायनीदीरे- 
मेसे मिय हओ णक पत्थर है निम शेपजी, यमुनाजी जौर शरीकृष्णको 
चवे दए षषुदेवजी दिखाये गये ह । उमरे मत्स्य, कच्छप मगर 
भी ब्दी सुदरताके साय दिखाये गये है । भउतक ऽसवे मम्ब धमे 

= शिपताल भी राजा पटनीमल्श्य चावाया भा > । प्रे 


यद एक साघाग्ण कुण्ड था। अव बहत विशाट, पापाणका बना हभ हे । 
† मको दी सामीाट क्ते ₹। 


त्रजकी भकीः 





1 8.; ए भ द य 9 


(५ "4 ५ 4 9 





शी 


सयुर दर 


यह्‌ निश्वय हआ है किं यह मूर्ति ईसासे दो सौ वषं पहली हे । 
केदापदेयमीके कटके पाम शिवाश्रम है, उमे वेवशाज हे निर्म 
मकंटीयन्म, पलमाय त्र आदिक नोते सम्बन्य रलनेवलि कडउतम 
यन्त्र है | यष पिवाकलनियि जपोतिर्विद्‌ शिवप्रकाशरल्जी 
द्विेदीका निरमोण किया हुजा स्थान हे 1 दर्शनीय हे । 
रिक्षा पिमाग 

मधुरारमेदो कारेन ओीरदो ई स्ट है--१ किरोरीएमण- 
कालेज, २ चम्पा अग्र कारेन, २ गवर्नमेण्ट हारं सकूट, ९ मिशन 
दा स्र, एक हिन्दी मिडिठ स्टू भी है 1 पहले ओ मन्दिरोके 
करमते संस्कृत-धाय्शालय ल्खि आये है उनके भनिर खर्गगासी 
स्मनामयन्य चौवे वरैजनायजी इटायानिमामीने शाहरसे बाहर उम्पीयर- 
नगरमे शाधुरचतुर्रेद-िधाच्य स्थापित किथा है । उतरे दिन्दी-अरेजी 
शिक्षक अतिरिक्त सस्छरनकी उत्तमा परीक्षातकङी शिक्षा दी जाती 
है । ख्गीथ राजा सेठ ्दमणदासजी ¢ 1, ए सी० आई० ६० के 
मुनीम रायबहादुर मगीटाठजीक्रे ज्येष्ठ पुन प्रसिद्ध सेढ नारायण- 
दासरजीके द्रव्ये वनी हई एक नारापणदास्-घरमेशाल है, जो 
मधुरासे कउ दूर ृन्दोयनकी सदकमर है । इसमे भी एक सदछत- 
पाठाया हे, निमे काकी परीक्षाओंकी पदा दोती है । य्य 
एक पुस्तकालय भी षै ] इसमे रामानुजीय वैष्णो वदसे तथा 
मोजनादिका श्रबध हे जीर अम्पा्गतोको भी चने मिले } 
कुश सुदल्ध्मे मालाडी संस्कन पादालय है| इत्म अनुमान 
तीस प्रयाया रदते है, भोजन करते ह बौर पते ह ! बु साघु 
भीमोनन ` , 


न्म 


३४ प्रजी फी 


धर्मदारर्प 

मथुरासे वाहर श-दारनव्दरवाजेसे भाग चटक्र्‌ यावं प्या 
सिनी मासो वनाय इं वडी दुदर पवी सोन धर्माय है। 
इमे उचने सौर निशशरीनेः यातरि रहलेका प्रथस्‌ परषब्‌ 
प्रयध ६, प्रतु दष्दरसे दुर तेनेके कवर्ण उगरणीदि यापर कंमट्दएे 
ह । र धर्मशटकरे पास चतिद एक तप स्थट दै, वर्धो नष्टि 
नामसे वकः पदे इष भदत्पले ग्य \ इदो चारसौ वकि होक 
अपमा शरीर त्याग किया धा} मदिशचरि्ोकी धर्मशाला दापि 
द्र्वरेषर है, शप चराति अधिक ररत ह । हापरसमा्ोकी पर्प 
शाल) कटय चावालोकी षरशारा, सिधी षर्णराटा, वीकानिस्यिषी 
धर्षा, दृद्दादकी परम्प, माटियेोक्षी धर्दहास, प्जावयकी 
धर्मा आदि सीसे उपर धर्मशारर्ये £ । पर इनमे हययरसवारये 
कौ लर्‌ करुकचचागार्छकी धमार सची धर्म॑शाठरे है, कयोकि 
नमै सव देशोके ओर सव जातियोकि उच वर्णके सनन ट्ट 
सकमे द । आमे जिन दैशशगलेने वनयायी ह उही देशि 
मनुष्य ठहर सक्ते है | इनसे भी उच एक धर्मराखभरौरदै जो 
महागजा अयागदरकौ बनयायी इ है । इसमे हर एक हि द्‌ जपनो 
इदे भनुसार चाहे चिनने दिन गदर रक्ता है ! 

दरवान 

मथुरामे चाग न्रे है । १-मस्तपुर दरमाजा, २-दीग- 
दसाजा, ३े-बरदावनं दखाजा, ४-होरी-दखाा । तीन दखाजे 
तो केञछ नाममात्र ह ! (नमे दग्रे नह ह । होदी दरवाजा 
च्घा छट मौर विशार परत्यरका बना इभ हे | फाटक इसमे भी 


॥ 


मयुर २५ 


नदी ६! इमे वण्यर है । इसे हार्दिग कडकटरने यनवाया था, 
उसतौव्यि इमे हारडिग-नोट भी कते है 1 
अन्यान्य स्यान 
हयोडी द्मजेके पाख कुठ आगे चख्कर रगेशधर मदादेवका 
मदिर ह, उप्ते सामने कु आगे चरकर्‌ गपरनमेण्ट क्ास्पिटड 
(खर्पताठ ) है, मिस्ते दरवाजे ओर युढ रमार विये श्रीनाय- 
जीवे टीकायत गोखामीजीने पचास जार रुपये दिये ये । िन्त॒ 
भधुराकी धार्मिक जनताके ल्थि यद एक बहे धमो भायुर्वेदीय 
ओपधाछ्यकी परिष आपस्यकता है । दो वैके ६ै--एक स्टाहामाद- 
यैक, दृस्ती इन्पीिट्यरैक । यो सरकारी गोरो घौर कार्येकी 
फौज भी सदा रषा कती है । थमुनासे पार जानेके च्ि पदे 
ना्वेका पुल या, फिर छेके फीपोका, उसके वाद्‌ पिर पका युक 
चन गया है, जो अगर कई साल्ते री (वे-ठिकट) टो गया है । 
चचार रेक्वे-सटेदन है--१ मधुराकैण्योमेण्ट, २ मधुराजकदान, 
३ मसानी (मधुरा सिटी), ४ भूतेश्वर । यहोपर सरकारी कचदर्यो 
भी क है--कटम्दरी, तदसीर, दो सुंि्ी नीरं दो जी ! 
सचदप्यिकि पास इस्ट्कियबोईं जौर गद्घा-नदर, यसुना-नदरेकि 
दफ्तर है । म्यृनिसिपिन्टी भी ई, जिस्म चार पुसट्मान-मेम्बरो, 
एक चौबे मेम्बर भौर दो सरकारी मेम्ब्ोके स्यान संरक्षित 
(रिज) है, शेष नौ मेम्बर पन्टिककी ओरसे चुने इए 2 ! इस 
कमेदीकरे दारा नगरकी सफाई, विजटीरी रोशनी, नख्का नख सौर्‌ 
खास्व्यका प्रव ता है जो सापारणत अच्छ है | जवसे भनिवारयं 
शिक्षा इं है, तवसे म्यनितिपिन्ीने यर्‌ ओर अपर पराहमरी 


३६ यजकी सी 


मदर बहत क्रा दिये ४ बीर याउनदद् मी इसके प्रवे 
११ भवययोकि च्वि भटम पाट्याद्य १ फर कल्या पाश्‌ 


्। एक पटा्यिका ककृढ भी टै, पर यट म्पनिधिपिन्यैक 
छथीनि मदी) 


दयापार 


योक पे, शुए्वन, सूतकी निपाद जर दोर, तोक 
कप्‌, ठदुरजीके सद्मा सिनारे ओ सोने चोदके युुट, पिः 
भादि गार, चन्दन ओर योते बर्‌, पृते नादि बद्र 
सच्छे यनते है { अव क्परडोषठी दुन्दर छपारेका काम भी बह 
शने टमा । 

विद्धान्‌ 

दरे यदयं एक-एक, दो-दो शद्धे पूर्ण क्ता सणनायोग्य 
विदान्‌ अहृत ये 1 य्हौके ष्टौ शिष्य दपानन्द सरखती थे | अव 
वष्ट चात नक्ष रदी । पर अपर भी व्पाकटण, साश्ित्यजगणिते 
(दस्य जर प्राचीन दोनो) वैयक, श्रोमद्वागवत, मन्त्राश्च, धर्म 
शाक्ते) छर्पकाण्ड आदिके उत्तम पिद्रान्‌ समयानुसार प्रियमान 
है शीर अतिवष परीक्षो्ीणासे इ्नफी सत्या बदती जाती है । 
मथुरा यमुनाजीके किनारिपर बसती है । परटीपास्से खड होकर 
दैखनेसे अथग रजे ठे देखने बड़ी शोमा दीनी हे ¦ पर 
भव ादोपरसे यपुनाके ट जानेसे भौर वीच-बोचमे रेती पड़ जनेते 
चद सुर दस्य दीखता है } जस्तु } 


न रस््--- 


यात्राव्णन 
मधुवन 


(महोीेव }--यह गौय मलुरसे दक्षिण पथिमग ४५ ह) 
या पचि मीठ्की दुरीपर हे । यो शरीरमच्रनीमे मू श्नु 
म दैत्ये विको नट क्‌ तया बनको उनादकः श क 
षो मारकर मधुपुरी वसायी यी । पी यदी मयुर व (न 
मधुरा अनादिकारते थी, पर मघु दैत्य ओर रमक ध ध 
उसको उजादकर अपनी रक्षस तया दैत्य प्रम = ५५ ८ 
पा भर्‌ सबका नाम मधुवन रख छोड़ा या 1 
भेद है कि मुरा सदा यशुना-तटपर बघत ‰ + 
दुमर्द है सम्भवे कि प्राचीन द र 
बन--सव मिटाकर शने केसे रदे ४, र 
है--पहले मधुरको मी मधुरा ब ल 
मधुपुरी एकतरे ही नाम टै । मयुननपर 
चतुमुज, वुमरकन्याण तया पमस 
गा, मषाप्रभुजीकी वैक दै दल 
मेय ह्येता है । इते >~ ˆ + 
ताख्वन (कम, ^ 
दै, यद्य शरीबटरामजीने चुक्रं ५५ 
लौर्‌ यख्देवनीका मदद है| एक व यर 


~ 
२ 
ध (1 


+4 


८ 
4 


६ 
४) 
सैर पै 


३८ यपे पाकी 


कखुदवन 
द ! पिठ पनिके दर्शन, यठ कदम नीये याडुरजीी वैस, 
मद्ाप्रसुनीर, युसादुनीकी यैवः ओर पिदयखुण्ड दै । शसते कम 
यटृत हेते £ । यदे ठोटकर मघुरन आना हेता दै । 
बते सतो्के मर्मे-- 
गिरधरपुर 
मे चामुण्डदेवीकेः दसन ह 1 
शन्तयकुण्ड (सतोदार्गोवि) 
इसमे शतलुदुण्ड, गिरिधारीजी, प्ररभेवनी भौर दातुम 
मदिर 2, गोसरईनोकी वैठर है । मतानको रष्डावले इस दण्डे 
स्नान करते अर यल्देवजी तया शन्तनु महाराजके मदिर्के 
पीछे गोवरके सतिये (खस्िक) रखने ठ । भादी दी ष्द्धिको 
यदौ यडा मेगक्षेताषटै शौर द्र रश्िवारी ममीको भी मैय 
हेता टै । इससे भणे- 
दतिया 
~ दै, जहौ मप्वरानूले भागकर छयि र्‌ द तक्को मात है, इस 
समय जाप बजय फिर घये ये 1 इसे चमे- 
गन्धर्वेदवर (गणेशरागंवि ) 
है यक्ष गल्धर्बदुण्ड दै ! इसमे ममे 
( खेचरीगोवि ) 
-ई (य पूतना गत्र दै )"सा सेचर्यैकदोपेत्य पूतना न गेम 


यात्नावणेन ३९ 
यहो भीपएक कुण्ड है] (ब्रज जितने घाम है, इनमे याने 
लुसार, जैसे टम न्लि रहे है, वैते मी प्च सक्ते है भर्‌ 
युस स्यत मागसे भी परैव सक्ते ह 1) इससे गने- 

वहुखावन (वाठीर्गोव ) 
~ है । यँ क्णङुण्ड, कृष्ण-बञ्देपज्ी तया बहुखगायक्रा मन्दिर 
है । महप्रयुजोकौ वैक ह । इसे अगे-ससनागो, वल्मद्रङुण्ड 
बौर गेरे दाञजीका मन्दिर है । इते जगे-- 
तोषर्गोव 
दै । तोष भतान्‌ा सखा या, उका यद गँ हे । ययँ तोष- 
शुण्ड है । इसे जगे--- 
विहारवन 
--दै यौ मिहयासन, कदरम्बखण्डी ओर चरणनचिष्च ह । 
जाखिन (यक्षहनूर्गोव ) 
ययँ रोहिणीकरण्ड ओर उख्देवजीका मन्दिर है । 
सुखराई (मोक्षराजतीर्थ ) 
यद्य सुरा देका मन्दिर दे { बादीसे दूमत माग ओर है- 
रारगोव 
मे बजयुण्ड, वञमदमन्दिर शीर कुठ हटकर कट्म्बलण्डी है ! 
जसोदीर्गोवि 
„ -मेसधङण्डष। 


४४ जवी सकी 
चसीदीर्गोव 
-मे वमतदुण्ड, नटिनादुण्ड, शजयददम्ब वृक्षे मुदुटका 1 
वका दृक्ष है यहं भोरयाष् प्रयम ही श्रव दले है ! 
रधाङ्ण्ड 


गे रापदुण्ड, एष्यदुण्ड, राघवदम महपरसुनी, गेत्र, 


गोदुटनामनीकी चैके है| दव्य उने यते? फि जदो वैष्र 
इन आाचायेनि श्रीमद्धागबतके सताह्-पायण सपि ह । मोगि दयेव 
(य्ह गिद्िज्की जिद्यके दर्दनि ए), पाण्डयीरष्ण 
(शृष्षरूप) आर चंयडी मक्षमाओंकि स्थापन पिये अनेकः 
मद्दर दै । पिष्टस्वामिसम्प्रदायके श्रयागद्तमी गो्ताणीकी धर्मशरादा 
है! रधदुण्डमे बहृतसे शविश्वम येगी भ्व्य निवाम 
कंते ह श्रीमदाभ्रयु चैतन्यदेवके चरणच्रित श्रीपपुनाधदति 
गोस्वामी यही व्िरञ्ते ये रौर केषव महा पीकर सपम्या षरते 
ये { चतय चसतागतके स्वविता श्रीषष्णदासर मोखामीजी भी 
यदौ रहै ये । जिस समयं मगगन्‌ श्रक्ष्णने अरि्टष्ुरषौ मारा 
यासि वैके रूपपे या, तत्र गोप ओर मेपियोनि भगवासे कष्या 
पिः (तुमको वदकै मासेकी कव्या गी है, सो विसी वीर्यम नन 
करके शुद्ध होओ ।' तव॒ धरीराधिकाजीने भपने श्रीहस्तोसे धरती 
खोदयर जर निवटना प्रारभ्य रिया } इधर श्रीकष्णने भी उदी 
रवार बुण्ड खोदा । इस प्रकार रधादुण्ड शौर शृष्णठुण्ड यने । 
तव राधुण्डमे भगगानूनै सान क्वि । वह्‌ अरिधष्ुर जह्य मार 
गया या, उस्र स्थनका नाम अरष्गोधि दया भोर भनकठ उसे 
अदी वदते है । 


॥ 
2 





भरीराघाकुण्ड धु ४८० 


मजर भा -~ 





४ मानक गा, चाच हल ( गोन) ९ 


यानावरणन ४९ 


रपाङुण्डमे इतने तीर्यं ओर है । जैसे कि ्रकुण्ड, 

, छछिताकुण्ड, अष्टसलियोकि वबुण्ड, गोषीवूप ओर्‌ 
रके समीपे उद्धवपुण्ड, जदा उद्धयजी एक रूपे गुलमठ्ता 
नकर निवास करते है बौर दूसरे खूप वदरिकाश्रममे । नारदवुष्ड 


भीर उदवभनीक दर्न हे । इरे जन-तर मापो, रसियन 
तया विलोुष्ड है । 


५ 


गोवर्धन 
रघाष्ुण्डसे गोपर्बन सीन मी है) भर्ग एक सरकारी 
पयर गडा इआ है, जिसमे शिकार खेखने, मोर, हिरन जादि मारनेके 
निषेपका हिदी, फारसी ओर उग्रेन फरमान हं । इसी वीच 
महूत रमणीयः ओर्‌ पिशाख अत्यन्त सुन्दर नकासीके कामका पत्थर्‌- 
फम्‌ चना हज परा एक ताटान है, निसमो ङुघुमसरोनर (कुषुमोखर) 
वते ह, जिते भरतपुरके राजा सूरनमछ्के ठडके जवादरसिक्ने 
दिष्टीकी छटके द्रव्यसे बनयाया था । इससे पूरं यह्‌ स्राधारण 
१ थना हआ था । इसके पास राजा सूरजमठ जगाहरतिहकी विड्यान 
छरी भीष, जो देखने दी सोम्य है । मोर्घन सति कोसक पर्वत 
है । इपतफो गिर्पिज मी कष्ते ह 1 गिरिरानकी ऊंचाई पठे बहत 
थी, अथ बहूत योडी रहः गयी है । पटले इनका दर्नि अङ्गीय 
येता था, अत्र सौ-दो-सौ गनकी द्रीसे भी नदी दोना £) 
मदातुमानेसे देखा घना ह कि योज्यो कटिगुग वदना श ‡ 
ये तिङ-तिटभर ष्रष्वीमे पते जते ₹ जौर किी श्रन्‌ ‰ 
ष्टी समा जगे 1 यद मजनानदी वेदी मदाय 3 


४२ यज कषोकी 


करते £ । यदौ बद्नाभफे पएथरये हए एद्दिवजी ये । प 
ओीरणमेवके ममे वे वते चते गये | अय उस स्यनु 
वूश मू गरिगिन रषौ हे । यदं मन्दिर वहन घुदर है, 9 
स्ययनिर्वाा्य बु गौय भीखी है । दूसरा मदिर चकर 
( चके ) मषटादेवजीका ४ । यद भी वन्ननामके प्रयायै इ 
हे । मापरसुनीफी वैव्क है । धसी शोर गोसाईूनीकी पेय है। 
चरणके चिद लर मनसादिवीके दर्शन ट । योते भागे वरि 
है, जक्षं न-दरयजी वसे 2 1 बस्ुण्ड, व्रहदुण्ड है ( पर इय 
यामा नष्ट नाती ) मानसीगद्नाे ऊपर गिरिराजजीरा सुग्ारतरिनद 
टै, विममे पुदुव्की लाषतिका प्रव्यक्ष दर्शन होना ए, क्षौ 
गिर्रिजजीका पूजन इजा करता है ! गिस्पिजनीके ऊपर भौर 
आसपास गोयपैनगोब बस रहा टै । आघाद्‌ छ पूर्णिमाको ओर 
कार्तिक कृष्णा अमानस्याको वडा मेय शेता ह ! यर्टोपर मानसी 
ङ्गी ह | जिसको मगवानूले अपने मनये उत्पन भिया या { सक्ते 
सीम तरफ़ बदे छन्दर धाट बने इए टै, चीयौ तरफ गिहिरिजजी 
पिराजमान ई, वास्तप्मे मानसीगङ्गाके बीच गिरिज 2 । यह 
एक भद्ुत द्ध्य है! दीवाटीके टिनि इनं घार्टोपर मनो धके 
दीपरफ जल्पे जति हँ } उनकी जच्छ भीतर वडी शोभ दीखनी 
ह । वर्की दीप बडी ठी दर्यनीय है । पहले यद भरतपुर 
रा-पेया! 

मानसीगद्रासे पश्चिम सकीतरा ( रीदे ) है, मो 
चन्दापविनौका अश्चरावय है } गोपर्घनकी दण्डवती परिमा भी 
हत दी जततो &ै । पले, पृथ्वीपर लेड अति ह ओर नलै- 


या्राव्णेन ४३ 


तफ शय कैरते है वो जयुटीते ख्फीर खाच देते ट अर्‌ पिर 
रव्कट्‌ उसी छ्कीरसे आगेकी ओर्‌ दण्डयद्‌ प्रणाम करते £, इसी 
परह दण्डयत्‌ प्रणाम करते चे जाते है आर एक अटगरेसे 
सेक पद दिनतररमे उस ्रकारकी दण्डमती परिकमाको पूरी कर 
ते है । योई-कोई एक जगद १०८ पछिमा करके तम अगे 
चते है । कुठ-नदुठ याती प्राय रोन ही परिमा करते है। 
शरणिमाको जपिक परिमा खगती हे । ( छिर्योको दण्डवती परकिमा 
गही कनी चाहिये । ) मानसीग्नापर श्रीटदमीनारायणजीका मदिर 

मि उत्तर मारतमे श्रीरामानुजसग्प्रदायकी गोपर्धनगदीके नागसे 
परसिद्ध सिद्धस है । गोर्न मरतपुरके साजार्ओंकी यनवायो दई 
उत्रियो ( समाधि ) शीर दूस-दूसरी इमास्ते वदी घु दश्घुदर 
1 एकदो मदिर भी नये वने हर्‌ अच्छे ह । इमे थे वुण्ड 
₹-- गोरोचन, धर्मरोचन, पापमोचन, ऋणमोचन । इनमे पिग्ले 
तो वरयते सिमा लर तुमे सूखे पडे रहते ह । पले भी 
गच्टी द्मे नदी है ] एक निटृचदुण्ड भी है । यदौ किशोरीदल- 
भनायाज्य है भीर दर सजनर्िंहजी सिंहीकी घर्माय है । 
म्राय यात्री इसमे वहत टहरा करते है, योक यर वहत आराम 
मिस्ताहै। शौर भी कर धर्मशादु है, सफाखाने टै, व्ड्के- 
छदकियेकि स्ख है । मयुरासे दीघको ओ सङ्क जाती है भौर 
गिरि गोर्भनके उपर होकर जरहोपर निकठती है, षह स्वान दान- 
पाटी क्ता है । यौ कष्ण मदधायान दान ल्या करते थे ओर 
रस षादीपर्‌ दानरायजीका मन्दिर मी है । इसी गोपर्घनके घास 
भास् बीर कोके वीचमे सारखतकल्पम द दावन या छीर इसके पास 


. वकी श्त 
समुनाजी यदत यी । सै कि ग्रीमद्वायव्मे निसि है-- 


ृन्दारन गोपर्भून  युनापुरिनानि , च । 
वील्पसीदुत्तमा श्रीदी राममाधरोरैष ॥ 
(१०1 १२।३९ 
स्क.दपुरण्मे मी रिख है-- 


अहो इृ्दारन रम्य यतर गोवर्धनो गिरि" ! 
ब्््ौतमीय तन्मे छि है--- 


पञ्चयोजनमेवात्ति उन मे देदरूपफम्‌ 1 

फाटिन्दीय पपुन्नाख्या प्रमानन्द्वादिनी ॥ 
जौ उप्त समय यशरुनाजी बहनी यी, वदो नमनाउततीगे 
अत्रनकः प्रसिद्ध है । यदि वर्तमान शृन्दायनको ही सारसतकन्पवं 
दृन्दागन माना जाय तो यह एक शद्रा उप्सित शनी 
कि्यक्षके वंद होनेपर दृदरने वर्णा करके रजका नाश कमा चाह 
था, तत्र गाय, गप ओर गेपिी भा्थनासे मोव्नको उटम्‌ 
मगानूने तजकी रक्षा की थी । प्र रेकी पर्णो क्षते रहते भेर 
माये लौर उनके बचे तया सेर धरका सामान यतमान वृन्दावन 
भठार्दं मीक चलकर गोवर्पनेतरं प्नदुशठ वैसे पर्व मका या 
इयय मानना ही पेय क्रि उस समय अर्थस्‌ ारस्वतर्न्प 
गोगपनके पास टौ डृदान बघा था वर्तमान दृ्दापनको वर्तमा 
सवेतगार्वल्पवप् मान ठेना चरित प्रतीत होता हे | परतिकल्प 
इुरङठ खीयथेतरं ची तारतम्य दभा करता है । जस्तु, यदस २ 


यात्रायणेन ५ 


, म्म है, एक तो सीधा चन््सरोयएको, दूस भजमनाउतो' ्टोकर 


चद्रपरोषरको । 


जमनाउतोर्गोव 
यँ जमनाजीका निदु है, यद्य अ्टसघा्मोमिपि कुम्मनदास- 
घी निवासत करते ये भौर आपके नामसे ही यहो शेखरा भौर 
सिकं प्रसिद्र 2! आजक्क यात्रा दानघादीसे अङ़ीम जादि 
स्ये हेती हई गोपर्धनके पूर्वमागसे पश्चिममागको जाती ह 
पटले गोवपनसे धज होकर श्परमदरे जती यौ 


अङग अरिरगोव अथवा असिग्रहरगोच 

अरि नामका कारण तो पहले छ्ला गया दै । 
प्र विन्द महयालुमाका कयन द कि कसके भरनेसे उस्र 
मके आठ भाई मयुरासे माग गये, उनको पकड़ने ओर मासेके 
ण्वि बच्मदरनी पीपी दौडे ओर यो जरर उनको पकड़ा 
तया मारा । इससे इसवसः नाम ।अरिग्रहः ओर आजकल (अगः 
भा । यष्ट बर्देवजीका मद्दिर ओर बटमद्रकुण्ड है। इससे 
ओ यद्‌ कल्पना क्षकः चनी है 1 कोई कोई अरिटाघुरकी कथाका 
सम्बध माण्डीरवनसे चतत दै । 


यद मधुरै -मोदनका मन्दिर दै । अव डरीफार्म भी यौ 
अन मया, इसी गाये बहत छुदर है । पर छुना जाता 
हः य्यः ारयोकते शवक स्गाकर दृष्टा जाता दै, यदि देसादैतो 
अहुत उनयै दै 1 


द पजर शरव 


अगनपुर 
यद गोप मपनामायाया ४1 
दुवेलेका गौम दुवेरङ्ण्ड पारानीरी ~ 
( परम राप्तस्यटी )} 
यदो ल मगेगनून भेपियेकि स्प शस्पूनोको महार कि 
धा { रम्ीतिग, चन्दस्निरीका मन्दिर, मदापरसुजी, गैदा्मी 
गोकुख्नापनीकौ येद £ { गीनाधनीका जद्षद् ओर षके 


जपि नगद पे | बद्धा वदे गीर मरी दुदुभीके आकरके द 
प्यर्‌ है, भिरन्े वमनिते नमाक्फो-सी आष एतौ है} 

य्य चद्ररैयए € । रामको प्रारम्पमे चद्रोदय नेसे 
चद्रमाकी किणेत्ति यन रेण मया चा जीर चनद्रमाकः प्रतिषिम्दे इत 


सरोग दीला धा} यर्लतुपर्‌ ही अष्टछपकरे अतुपम त्रं श्रीपूर- 
दास्रभोने निनन्षिन सतिम पद्‌ गवा पा-- 


सनन-नैन रूप रस भति । 
अक्तिम चारु चपर अनिपरे, 
परु पिजरा न समातते॥ 
चलि यति जात निर्ट सपननिके, 
उर्टं पुट सारकं रपद । 
श्रदामः अजन युन अ्के, 
मेरु अबहि उड काते॥ 
मोहङ्ुण्ड पैठोर्गोवि 
बमम षुखनेको (अदर जलेकोे ) वैरना यद्वने है--््से 


प्रजकी फी 





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त्रज्यं सकि <~ 


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भोजनयालयी 


याघ्राव्णेन 9 


५ पठनेकी शुका दै | चतुर्मुननायजीका मदिर है | नारायणः 
। समीक, देखकदम्ब, क्षीरसागर ओर वलमद्रकुण्ड है । 


वद्गोषि ८ वत्सग्राम ) 
बग चरमेका स्थान ] यह ॐ कुण्ड - १ कनकसामर, 
९ परप्ुण्ड, ३ ( मालन.्ोर दाङ ) रमदुण्ड,  अ्गरो- 
इ, ५ (वतसगिहारी कुर्‌ ) रापरीवुण्ड, ६ स्डुग्ड । 


आन्यौर 


इसके सम्बधर्मे देखा कडा करते & कि जब मगवानने 
गोम॑नकी पूना सी ओर अनकूटका भोग ठगाया, तम शाप हौ बहत 
ल रूप धारण कर गिरिराजके उपर प्रत्यक्ष परिशजमान होकर 
चारो ओोएसे भोग रुगाने ( भोजन करते ) ते । उस समय यद्‌ 
भी कहते नाते ये वरि "आनो जरः अर्यात्‌ भजर सओः इमीसे 
उस स्थानका नाम आनोर या 'आ-यौरः पड़ गया } यष्ट महप्रसु- 
नीक वैटकः है भौर पतौरीतुण्डः दै 1 या श्रीराधिकाजीने गौरैका 
पूजन किया है ] यद्यत फिरि गिरिरजजीका पूर्वीय भाग मिना 
है । यहो गिरिराजजीगे कड प्रकारके विलक्षण विह, ददी-कयोरा, 
ोपौ, मोजा आदिक दर्दन दति ए ओर सकर्थणदुण्ड, बच्देवजीका 
मन्दिर 2 1 बाजनीशिला--जिसमे खडी या अंगु खगानेते आयान 
होती है ] भमि-- 


केसरीकुण्ड, गन्भर्वङुण्ड, गोविन्दकुण्ड 
-& । यदौ ही इन्र ओर सुरभीने भगवानका प्रिद गोगिदा- 


४८ प्रचकती शीशी 


भिक त्रिया या) यदो टौ मानक मोरिद नाम रफ 
या ¡ भोगिनदुण्टकी महिमा सल्दपुराणशष्णवन्डये दै-- 
यपराभिपिक्तो भगान्मघोना यदुवैरिणा। 
गोिन्ददु्ड तजा सानमाप्रेण मोदम्‌ ॥ 
महाप्रयुजीयी वैव्क ओर चतुरनायकि यदो श्रीधर 
ददान £ । ललँ गिरिगिनमें जड़ी (राठी ) फा चि १1 मुकुट तप॑ 
दकष चिद £ । इत्ते दकषिणफी मोर भहादेवमी दैव्य वैः 
दण तपा शरीदाशा्षणके दर्शन होने ?, पर पु दूरे ण्डे दीनेपर 
षटोते ट, पास जानेषर नही धेने, कैपठ रेखा-से की दीनन £ । य 
शमे परिचिग्रत £ 1 इससे आगे पिदृरीशिदा दै, निमे 
दा छमानेसे यमे सुवा आ जाती है } आगे गिरिराज शततम 
भाद" जि ठी कते है । यद्य मम्तरवुण्ड, नरच्वुष्ड 
है ूढरीक रीय" नामक गोपक मन्दिर है । धनँ रामदामजीकी 
गुफा ह) ऽसते भगे एष्णदासजीभूतका इभो है । इससे जणगे- 
दयामदट्क 
~ } रहो गोषीतदार, भपक्ताणर, श्यामदाक उङुरजीख 
मन्दिर शौर जल्वङ्ा-ये चर खट है । द्यमतमाछ्के 
मीये वैव्क है ओर शनेक परिचित चिद्र है । र्हौते भणे 
चारौ ओर ली्ास्य है । उततसे भागे-पीटेका कम नही है । 
भघरणपाठी" है, जहौ श्रीराकुरजी, हसी गाय, एरपते हयी, 
उच्चै रया धोडाके चरण चिद्व है । टका ब्देरजीकाय मन्दिर, उपर 
वैठे दए बल्देगना चर्टमिं चरती इर गरयोद्तो कः श्वुकर 


यात्रावर्ण॑न ४९ 


(1 हते ये । कामरीरिला { दायको काला करेयान्यी ) 
५ एरानत कुण्ड गौर अष्टापकरे प्रसिद्ध कवि श्रीगोमिन्द- 
तामीकी कदम्ववण्डीक जर्‌ सुपा, हरजी पोखर, हरजूकुण्ड 


भादि स्थान है ) 
जतीपुरा 

इमे श्रीपडमाचा्के राज गेस्वातीकी सात॒गदियोके 
पत मन्द्र है । यकौ अनकृटके दर्शन शच्छे होते ह । इसके 
भति गोसािोगी याना जय य्य पर्वती टै तब भी 
नदे से पदां बनाकर भगवानुत मोग लगते ह । इको 
¶नगद़" कहते है । यद बुना जग तव किमी गोखामी 
भय सेवका मनोरथ होता षै तज भी हो जाता षै | जतीपुरामे 
भी गिर्गिजजीका सुतरमिन्द वतखाया जाता है ! उस स्यानपर 
गोखामिरृद श्रीनायजीका-ता वदा घुन्दर श्रद्वा करते ह । 
छखारवि दपर दूध बहत चदराया जाता है । जिससे कि दूधका 
नाखासता बह निकठता है । य्छपर छोटा सा मदिर बन जाना 
चाहिये ¡ भया कुते, कौर इसे अपयित्र करते ्ै ओर प्रसादी 
दू भी पैम आता है । महाभ्रमुजीकी बैठक, नामिका चिद, 
श्रीनायजीके प्रकट हयोनेका स्था 2 । अतीपुरामे गिरिरिजमे कद 
यन्दरके ह शीर गिरिराजकरे ऊपर र्पाकी बदोके चिह दिखायी 
पदते & 1 तल्हटीम ८ नीचे ) शरोगिकाजीका तीजका चगरूतरा, 
दण्डोनीकशिन आदि ह । अगे-- 


---------------~__~_ 
% कदभ्बलण्डी या क्यार कदभ्यो़े खन वनं कते ट | सनं 
ग्ोकभोर ^" मने रेते १1 यह दर्शनीय हवे १] 

“ 





५० अमष शोशि 


यद्रण्ड (र्ढनङुन्द) 
दे यन्‌ मशदरक पिर, मृदुर, पिष 1 फ 
मनू फक्क ९ नवी ) क म्य ( अन्यै 
रागििमीकी तरक, जतभ्ननाद्भ, पूमकनि्यि अदि स्वव ४} 
गंखिषीर्गोनि 

मेोपिपे} कौुकवसच शेण्या कणि उसतय गस्य शुके 
धुप गोद शुरदी द मादजद लते दन्ते पमासेलणेटतर 
यदी हती की £ ( भदा 

फहव अपामे खोग, जदो मंरि वद्र नदी। 

पमत सर रतमोय, गेखजोदराकी गोटे ॥ 

यपे मप्रानल हो रेडी है । दन गुद्रठुण्ड, मदाप्रमुजी 
की प्रैठफ, तिना (श्या ) मादरः दीक्यो धनो, धैन ( परिजप 
गीर) आदि खव) यक्ष यदभद््ुण्ड ओर रेपनीङ्कण्डे £ 1 
ये सद स्माद साधने आमपाक रोनो ओस्यो ४ । 

डीग (ट्ठातन) 

यकषैसे भरपुर रागय प्रास पयो जाना है भीर कामग्ननके 
श्दता है । इसीते भरतपुष्ेश गे तेजेद्की पदयी है । परे कमी 
सारात्रन इनर ही रम्ये या} यदौ मरतपुरनरेशके बने दर्शनीय 
भवन ह । उनमें फुष्टरे चछ्नेका अ्ं आनन्दं एता है 1 किन्कुड 
वर्मा श्तु शरक जाती है । मे फुषटरे मादो यद्रो जमाउसफो चन्ते 
दीङजीक मद्र, मर्नपुर राञ्यका एक शआरचीन किलग मीहे! 
यय शक सोकर ( स्पमाथः ) वदन सु-दर दै । दीने शका म्भ 


याघ्रावणैन ५१ 


नीव्गोव 
ग्या है । यहीं श्रोनिम्बर्काचार्मं निगरस करते ये । दृतय 
नीव महायनके पा है वहं उनका नम इभा या ।ये दी एक 
भाषाय एतदेरोय ओर्‌ सो भी ब्रज्रासी ह 1 अन्य तीनो आचार्य 
धपिषयुखामी, शरोरामानुन, श्रीमच्च दाक्षिण्य ह । निम्बाक॑सम्प्रदाय- 
के जन्य दान शीनिम्ारकको मी दाक्षिणात्य ही वतटति 2 । 
नीपरगोवको एफ मार्ग गोव्ुनते भी मया टे । नीर्गोवसे भगे- 


पाडर्गेवि 
~ । यछ पादरद्वा ई । हुरो दे । दीगते दूसरा माम॑ 
परमदृरे ८ परममन्द्रि ) गोव 


को गया हि | इसको श्रमोदन' भी कष्टा कते है । यहो दृष्णवुण्ड 
शर श्रीदामाजीसा मन्दिर दै । 
चहज ८ वञ्जी ) गोव 

जद इरन कमित होकर मगयान्‌कती स्तृति की है । वेदशिरा, 

मुनिदीर््ोब है । पलदरेसे जगे-- ॥ 
आदिबद्वी 

~ 1 नदादि गेो्पोको यदौ ही दरीनारायणकरा दर्षन वराया 
है । सेञका गथ, नयन सरोपर, जल्खगद्ना, खोद, दिर "डे वदरी) 
ओर्‌ “्मानस्षरोयरः आदि वदे अपूव मनोहर्‌ उत्तसखण्डके स्थल 2 । 

म ५ मीचमे नारायण ओर इधर-उधर चद्र-वुयैर दै! 

मे व्याम, नर्‌ जर वदरीनाय है| एक 


प्‌ मज्की पने 


पदा स्यन-व्यापर दिम स्यन्ते श्तैन म्यान्‌ पिलनी ददै, 
यं एदा जा मिस्य ह । पड गहि गोागियोका पिन 
ह) षम भागे सत पल, घगधिशिय, नौर प्यनं ओैर 
शनन्दाप्रि ( शरी ) £ , 
इन्द्रोरीर्गोव 
यष्ट गौ हृदृेप्ानीका ह) इमे एदुतेठफी न्तन 
इदुकृप ददु्ुण्डषहै। 


कामवन 
„ स्मो काम्यबन भी फटते ह । पोच पाण्डव वनपसकरे 
समय मे र्हेये । यदमी बृन्दावन है, यतं मोकिन्ददेयशीके 
मदििरमे ब्द्धादेवीका मदिर भो है।( यदो मी श्रीकृष्णने दान 
अपग कर मोपियेति व्यि था । सैषा कि भरीमद्रागतमे नगक 
है-- "कदाचि पच्या भौर 


एव विदि कौमार" _फौमार जहतु । 
निखाय सेदुन्यर्मकयेच्छनादिमि न 
(८१०! ४।६९१) 
ये खटः कामननमें इई ह । 
यो चौरासी तीये ह । युतूदनइण्ड, यशोदाटण्ड, 
येतुबरथरमेशवर, चकरनीर्थ, ठद्धप्ज्दुण्ड, ठक्ठक्दुण्ड भ्सि 
च्याम्ङेण्ड भी कहते है ! दुकद्धकक-दरा-यह श्रीदृष्णचन्द्र 
ओवनिचीनी सेके ह जौर बन्दरमे ठिपकर पश्र प्रफट दण 
दै, वैरी बजय हे । चरणपदाढ़ी, निसपर्‌ भगवरानूके अञि 


याग्रावर्णन ५५३ 


पररणसिद्रीका दर्म देना है| महोटिङकुण्ड, उटकी-पसेवी । 


॥ 
। 


जव गोषियो यरोदाजीसे भगान माखन-घोरीका उरादना 
दन ठगी है तय यदोदाजीने वे बडे पत्यर जिनमे एकः मेय 
६ उथ्की बताकर, जो यदा है उसो पेश बताकर 
(गे वाघलरमे यक यैर पोच सेरमे बहून मारो ह ) कड दिया 
कि इनसे मालन-दही तोटकर-- 
जाको जाफो खायो सो ठे जाओ री। 
गारी मत दीजो मो सरीरनीको जायो री ॥ 
रनाकरसएगर, छठिताजोदी यदो, नन्दद्‌ःप, मन्दवेटका, 
कुण्ड, देवीकुण्ट, गयाङरण्ड, गदापर मगगानूके दर्शन, प्रयाग- 
बुण्डा काशीदुण्ड, गोमनीद्ुण्ड, श्रीदामादि पष्ठगोपदुण्ड, 
पोषरानी ( यशोदा ) वुण्ड, यदोदाजीका पीर है । गोपराज 
पताका नाम हं 1 गोपीनायजीका मदिर, चौरासी लम्भा-निघके 
चौरामी व्म्मे मिने नहीं जाते-शरीृष्णचेतन्य सम्प्रदाये 
मोपीनायजी, गेपरिददेवजी, मदनमोदनजी, रा गायन्छमजीके 
मदिर, श्रीक्न्छमप्तश््रदायक्रे कृष्णचन्द्रमाजी, नप्रनीतप्नियाजी, 
मद्नगदनजीके मन्दिर, दैतपाग्यका मन्दिर, सूरदुण्ड, 
गोपाठङुण्ड, राघादुण्ड, इीतरवुण्डः ब्रह्माजीका मदिर, 
ब्रह्मकुण्ड, श्रीढुण्ड, महापरमुजी, गोमार्जी, गेोङुढनायजीकी 
वैट+, खिनठनीदिष्म, कामक्तागर, व्योमघ्ुरकी युफा | 
च्योमाखुग गोपका रूप धारण कर भगवान्‌ ओर भोपोक्ते साप 


नी ख्यो सस्ता इभा देखे सने नन ने 


च पवी शव 


गुप्रम इर अताया | ममगरनूने उमी शत करो 
देकर उमे फय लर्‌ वेके गुक्ये नित्य ( कटय 
मुव, दयाय इनके पिदर १} नो उनःकर यउन्यनेकि माये चणम 
चिद्रटि( मधप मडरयजीकं दनि चरण पिह) 1 
भोजन पादी पाइपर परपष्यी दछनमिद्ध 
भनक यिरयो यनी द्र ए । भोगकर, शृष्णङुण्ड 
चरणुण्ड, गष्दगुण्ड, रामदुण्ड, रामर्फदर, भवाघ्रुग्की गुम; 
कपिः मदादेयका मदिदिर--ये मददेष पथाम परप इर्‌ ९। 
च-दभागाुण्ट, परददुण्ट, पोयो पाण्डयोथा मादर, चारं सुगति 
महादिक, धरमवुण्ड, धर्म्‌प, पचनी, मनरमाद्घण्ड, इमन्धिरा 
पिमि्युण्ड--यष्ट॒पीर्थरज ९--दिषेयेका न्थान, पुनद 
कदम्बलण्डी, रासमण्डल्का शववरूतरा, युश्रमे जट्श्धा, हारक 
स्यान, यकन सविन श्रना सेन श्रोयधा फष्णके छ्यि कनायी ४ । 
पो पमे श्रम दूर भि ६ । द्यौष्‌ जायरकरे चिद ६। हन 
नामय देनमे स्वषट प्रतीत होता दहै रि यष्ट मी ददान टै। 
ययते भी आदिवरीस्यानगो मर्म गया है| पूर्पाक्त बु्डोमि 
बहुन मे सूष्व ग्वे ट 1 वहू्तोका पना यी नही ट । कोमनसे जगे- 


कनमारोगेवि 
-है । यद भगवन्‌ हिबेलेमे इञ 2 यद दृष्णके ओर दाउजीके 
कानने) रेन कोईक्ेरं पहने ह । यछ वरडण्ड है, 
घुनदरकी क्दम्नखण्डी है, पनिदरीदुण्ड, दृष्णुण्ड, टादुरनीकी 
मेलकः, पाका करटमनीक वेदयः इत्यदि. हं! इसे अगे-- 


# 


यावराव्णेन ९५ 


१ चित्र-विचिघ्र दिखा 
। इ रेलाभेते निह है भोर उन कोरक विह है । 
त न है, माणिकश्चिल ओर देषडुण्ड दै } 


ॐचोगोव 
दै । यद शीवलदेवनीरी लीटाभूमि रै । य्ह श्रीर्देवजीका 
पकषण्ट है । सयोग है । श्रीरयाडष्णका यो विवाद दभा 
दषा भी कोको मानते हे ! यह्‌ गोर श्रीकडिताजीकी जम 
पमि रेसा कहते है । या परममक्त महापिदवान्‌ शीनारायणम-जी 
भेदै । निने अरनमहिमाके सम्बध १०८ भ्रन्य बनाये 
1 नद्गेव नौर वरसानेके निगरसी ईइहीके शिष्य है । 
यो भ श्रोविष्युलामिसम््रदायके गोखामियोका णक दक्चनीय 
मन्दिर है । ऊचे अति मानोखर ( माुसरोपर ), दृषमातु- 
पुण्ड, रापद़ीदुण्ड, पौड़ी ( खडाऊ ) दुण्ड, शीतरबुण्ड) 
तिन्कदुण्ड, ख्टिताङ्गुण्ड, परिदाखादुण्ड, वुहकदुण्ड। मोरदुण्ड, 
जस्श्िहासवुण्ड, दो्नीदुण्ड, यर्टौ न-दरावाकी गर्योकी दोहनी 
धोयी जाती धी} यदो टौ पदले-पष्टठ श्रीयशोदाजीने श्रीराधा- 
शृष्णमे युगल जदीके दर्शन किये धे ओर ईयसे ब्रार्थनां कीयी 
कि मेरे ययका त्रिगद् इसी लारीकरे साप हो, सूर्वकुण्ड, नैवा 
चीयारी-म्यान ओर रनदुण्ड है । अने-- 
उभारो्गोवि 
दे, सवीक्यरगवदै, 


) यजकी श्ौकी 


य्रमाना 


इको बरसात, अरहक्षानु ओर शपमादुपुर भी कह कते ई 
यद्य एव धेय-सी पादी है । यह बृषमानु ओद कीतिं रानी 
राजधानी है } यद पदाडी प्रसाजीका खूप ६ { इसके जो चारशिढ 
हे द्यी चार मुष £] ( इपी प्रका नन्दो जो पडाडी है च 
शिव्रमोका शूप है शौर गोरधि बिष्युका स्प दै) यदो मो, 
मानमूह ( शठ ) है, जह्य मानत्रती तथाजीको मगवानूमौ मनापा या 
पिद्षगदर (गह }, सकीर्णपेय ( सौक्रीलेर )--पयं एक. 
विचिन्ता हे । दोगीं पयदका अद्य नाष से आक्षको एक 
ही पत्यै जो धश्तीपर जम रदा है । इसकी पक्ता दने 
ही माङ्म टेन है । बरसानेके दूसरी ओर एक रदी पदादी भीर 
४, इन दोनों पादिकी दोणो ८ पो ) में बत्साना बसा 
दोनी पत जरं मित्ते २, ब्दो दक्ष एकतम घाटी कि 
अके मनुष्य भी क्नितासे निकल सकना दै | इता स्थानक 
नाम सौकरीषोर है । माने सदौ अष्टमी चतुर्दश्षीतक यद 
युत सुन्दर मेख टता है ओर इसी प्रकार फान्पुन सदी भमो, 
नत्रषी शौर दशमीको दोरक ठीग लेती है। ययैव क्षेमी 
दर्शनीय है । 


विहास्वन, गह्वर ( गहर ) वेन 


यह बहत ही रमणीक स्मान दे} र्का चिद, महा 
भयजीकी वठकः, दानग्र--यकष जयपुर महाराज माधवरिद- 





१० ५६ 


शीदडलीन ( राषायी ) क पदर ( वरना ) 


५ सजी नौकी 


बरसाना 


हयो वरताचु, प्रा ओर दृषभाटप॒र भी का कते द| 
मछ एक छेद-सी पदाद़ी है । यद वृषमातु नौर कीरति एना 
राजधानी है । यष्ट पदाद़ी नलाजीका रूप है । दके जो चार शिव 
वेदी चार्‌ युव? । ( इसी प्रकार नन्दग्े जो पदा हे ह 
रि्रनौरा य है थर गोबर्थन पिष्युखय ख्य दै } यः मोखुटी, 
मानगृह ( गढ़ ) है, जक्ष मानवती रधाजीको मगतरानूने मनाया चा। 
विलापतगद़ ( गृह), सकीणैपय ( सौकरीणोर )--य्टो एक 
व्रिषितता ६ । दोनी पष्क भद्ग-खूप नाके से आरारका एक 
ठी प्र हे जो धरतीपर जम रहा टे । इसकी रिचता देखने 
ही माम ्ोती है । वरसानेओ दूसरी ओर णक छोटी पहाड़ी भौर 
दै, इन दोनों पडावि्योका दाणी (खी) मे वरान बसा दै) 
दोनों प्रैत जक्षौ मन्त, वणो दमौ ण्क तग षादी दै कि 
अकेटा भवुष्य भी कदिनताते निकल सक्ता है { इसी खान 
नाम तकरीखोर है। मादो छदी अष्टमी चतुर्दशीतक यँ 
बहत सुन्दर मेढा ष्टोता है भौर इसी प्रकार फान्युन दी जमी, 
न्मी नौर दशमीको होरीकी टीना होती है} यर्दोकी हेरी 
दरोनीयषहै! 


विहयरनन, गहुचर ( गहर ) चन 


ह ब्त टी रमणीक खान है! राष्ठका विह, महष 
ड 
भपुजीकी वेठक, दानग्ड--यदहो जयपुरे महाराज माधवपिद- 


ण्ह 


( (५) व ( (ल ) एवमु 


अकी फी 


स न क ट. षः 
ग द ५ 


५ ‡ 
५४५८ ^ न 
४ 1 








च 
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५). 
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॥) 

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ग्दिर (प्रेमकसेकर्‌ 


पारजीका सः 


रापाो 


यात्राचर्णन # ६1 


श कवा भा मदिर बहर घुद्र है, जयपुरकी पत्यरकी 
देषमेयोग् है । गायके सर्नोका विद्‌, लडटीनी 
(नी) का मद्दिर-यहौ ययँ प्रधान ‰ | नारायणग्रनीकि 
गारायणदासजी ब्राह्मण यदं भजन किया वरते ये । उनको 
ममं ्रदीगीने दन दिये रिं जहा वैढकर वू. भजन 
भत दै उ वीच ह । मुक्े निकाठ के ओर मेरा मन्दिर 
प उष्टने यद्‌ समक्‌ कि नतो सुकषसे मददिर बन सकेगा, 
१ सतिमूना षठो सेनी भौर भजनमे मित होम, मूति न 
ह कि खपर हआ घय उसने धरती खोदकर महारानीको 
चख जर टी बनाकर उनकी सेगा-पूजा करने लगा | 
१ समम गग करभेकी उसे आङ्ञा इदं शौर छठ दिनि 
क पराह्णे अपनी काया उसे व्याह दौ । उसी उशपर 
पन गोलाई ह दसा छोग का करते है । जव पहादीके 
ह इ मद्रपर दृष्टि आती है तम बड़ी शोमा दीलती है । 
४ यब्टीनीओे मद्रे सीद्व्ोपर नीचे उतरत टै तव बीच 
| पितामह महिभावुका मादर आता है । दूय 
. धृममातुका है । जिसमे इपमादुजीकी पूरी मति है भौर 

एर भो श्ीरपिकाजी रै तया दूरी ओर गषिकामीके माईश्री 
। सधिकाजीकी लिता, विाखा, चम्पकल्ता, रगदेवी, 

५, देख सुदेव, तद्वपिया-इन अष्ट सखियेकि मष्दर है । 
भखानेभे सनाल्य र्ण ससम करके यनवाये इए 


ष सरोम बहत ह । ये ब्राह्मण बड़े पण्डित, वड़े घनौ 
१ के उदारे 1 मुस्षटमारनोनि वरसानेका भी बहत नाशा 


ए मजकी श्चोकी श 
क्या या 1 चिकमौटी ( चित्या ), सरण, ध 
्रिणादुण्ड > श्रीप्रियाजी जम्यद्त उद्वर्तन करके ध 
थी । यहो यह्‌ भी भ्रतिदरि है कि रापरिकाजीने ८ ४ 
अपने पीले दाष यहो धोये £ इठे इ नाम 
गया है | पीदोर-यहों पीडे बृक्ष बहूत ् शमे 


मरमसरोवर 


ी. 
। यक्षं रामगदनि रास सेठ धनसमामदासजीके पुन 
ती पोरारका इजा श्रीरधा-गोपाठनीका १ 
वि एके सकत पठश्चल ह । योप अक्षय अन्त | 
१ श्यत आभे सको दाठ आरा दिवा र 

अह्णो भोजन कराया जाता है ओर जो कोई ध 

१४ पणा हे उनको मी असाद दिया जता ह | त 
ियोवौ भी भामाने गहसे भवता टे । मदो शौरकोनुत 
अ ध । इत म्दरसे प्रमस्रोपरकी शोभा टे गौः 
५ स्स मदिरकी । म्ेमतेपर भरसाने ओर नन्दो 
भीर दै ॥ राषागोपान्भीक् दरे सम्म साद्‌ छे. 
भीकदवायस्यी पोरे षद ई 
सि त द ट शे अछि आव रही वपभावुमारी । 
[च प्ेममरोपर भेट भई 


~ 


६ च ओम निषन नवीन निहारी ॥ 
धित नाहतु ई इ ही रय त 


यहे कीन्ह य प्रियसों जय प्यारी । 
पनत निपरनदवहक य॒दि निङ्कजविहारी ॥ 


यानावर्णन १९, 


‡ परमेव रासर्चौतर, प्रमविहारीका मन्दिर ओर 
वनायनीरी बरवः है । 
£ शपे भगे-- 


सकेत 

¢ जहो समय-समयपर श्रीरा ओर श्रीकृष्ण मिटा करते भे । 
पी ्रिद्ि दै फ ब्रहमाजीेश्ीष्णका गर शरीराधिका- 
$ साय यही कराया था | इसीसे पीरीपोषरवाी 
1 भी प्रतिद्र ईं है । यद्य रासमण्डलका च्रूतरा, 
का ग्यान) रणमहट, शष्यामन्दिर, गिहलदिवी, द्िट्ण्ड 
संमत बहागीका मन्दिर आदि स्यान दै। मदा्रसुजीकी 
के है] ओर्‌ राधारमणजीका मन्दिर, शी्ृष्णयेतय महाप्रसुकी 
ॐ है। शसते जे-- 

रीठौरा ( रखिरा ) गोव 
:1 यह्‌ च द्रापीजीका गौय है । यदो च द्ागीडुण्डद, च द्वारी 
गी चैट है \ चद्राययजीका पुमन्‌ है 1 ठवुरजीकी 
फ, मक्प्रमुजीरी वैय ह । यजोदामन्दिर, उखितामदिर, 
प्तधुश्च, रासमण्डठका व्वीतरा, हिंडोर स्यान, विशावाजीरी 
† पिदयाप्यबुण्ड परिशलदुण्ड, कदम्युञ्च, मधुसूदनबुण्ड, 
{नवुण्ड-मगतरा-छी स्स-माघुतफो देख॑यर ब्रजयसी मोहित ए 
+ घुपयुय नदो री, त्त्र भगयाले वशी बजाकर उनको 
देन्‌ रिया, उस दिनम व्रनरसियेोनि मण्वाका मोदन नाम 
खा । हाऊ विसाङ-यदं यशेोदा्जने श्रीडफो दरया ४ 
~ भमव जाओ रछा भेरे हारः जायो दै 


र 


६० यजकीक्षोकी 


द्षि विोतरेका माट~-यद्‌ उतना बड़ा दहै कि इते $ 
आदमी टिपर यैठ करता है 1 पपरती्य, वे्छुण्ड, 
गोव पनिद्ारीडुष्ट-धीयसोदाजीकि धर यटि टी # 
जाता था, उसको मगमरन्‌ पीन ये । चरणा, म 
मगवाने चरणमिद् € । न-दर्गोब, चौडेखर ८ चदु", 
गोणीति, गोका मू, गयौका दि 
(पन-सतेपर ८ पायन सपेरर }-यद भी एक दर्ानीय श 
ह । शरीगछमाच्थनीसी वेदयः, श्रीसनानन गोखतीणीः 
कुटी, मेोतीदुण्ड, शुखपारी-उसाय, व्यामपीपरी ( काय पी 
देर्‌ कदम्ब, शरीरूपमोखामीकी इटी, दष्णदुए्। आषु 
मेद महद, बृष्णङुण्ड, जगहर, वुद्कवुण्ड, छार" 
यथिह देगी, जोगिपदुष्ड, क्षो सौर मण्डर, नूरतेय- 
अकुए्जी इष्णको ल्पाने गये पह रीड, वन्नफुण्ड, वकष 
रहि मोन शाखा उद्धङुण्ड, यद्धे कवाटक 
रौ क्यारी -- } इनमेमि एक दमे सन दोन उत्पतन ४ 
£ जिन र्यीकमर्‌ वतु भ सके तोर पाति बनाय ले दोना 
उद्धगङी पैठक--नदो उद्धयजीने गेपिभरोको श्रीश्णफा स 
छुनापा है } न-दपोलरा, यदोदाकुण्ड, मधुसूदनदुण्ड, 
( नरपति ) नाद, न-द्राय, श्रृष्ण, बलद, यशोदा एक म 
पिरान रहे दै । यही प्रवान मद्दिरि है [ यक बहत किशर ` 
सुन्दर दै । न दीक्मर महादेव--ये धत्रनामके पराये इए 
दस से एकः वादा येगी द्वार मेरे भाया हं री ॥ यद खील 
योदान दन, विक्री ओर चतुरानने उर है} 


न 


नीः 


२.९ 
र 








याच्रावणैन ६९ 
नन्द्गोव 
18 न्द्गाव 


मन्दम कदते है, यदह न-दवायाकी राजधानी है । 
| ञ्प्र चा है} पटाङ्फे उपर श्रीराधाजीके 
॥ न चरणचिह्॒ दै 1 नम्दीद्स्के चायु 
॥ खरः नेद से्नेका स्थान है । क्दम्बयन-- 
£ दाउजीमे भगवानूने चरण दावे है । महिरनोगोद-- 
मिनद गोपकी गक्ष । साचौरीगोय, गिोोगोव, नन्दगोवे 
त जभ, पाडरगेगा ( पीयन ), किंशोरीङण्द, कोकिलायन 
भागे पश्चिम )--जलौ कोयट्की भोति आप बे है 1 
५, धयोकियखरभूषण › आपका नाम दै 1 सधन दृ्ोका बहत 
दरवन है! इससे जने पूर्णमामीदुण्ड (पूर्णमासी श्रीनन्दकी 
दितानी ह ), दौमन ( दो पिठत ), कम्बलण्डी, सनदी 
मकीडण्ड, कजरीयन, कूच्णदुण्ड, ओंजनोगो्, अंजनोलर 
भञ्मनुण्ड ) ह । भओौजनीरिा रै । इमे एकः प्रिचित्ता है 
; शिङापर उमम एडनेसे कोई॑चिद्र नटी क्षता है र्‌ उसी 
ष्टीको ओँल छमनेते ओमि अञ्न ल्णा-सा मादम देता 
\ यष्छ श्रीरष्णने श्रीएयाजीते नयनो अञ्जन खमाया धा 
मषी मक्तने कटा है-- 

धन्या मोकुस्कन्या वयमिह मन्यामहे जगति 1 

यामां मयनसरो्ने अ्जनमूतो निर्न वमति ॥ 


र छ) 
४ 


६२ वजकी शौक 


सीपरसोगोवि ( शीघ परव ) 

-द जन अकूरजीके साय मगयन्‌ मघुसवो पार ह ओट 

व्ह होकर रथके नीच मने धि अनि णी है तव मण 

कदा हैली परसो ही जेगा । इसपर मक्तने कदा है 

शरौ पिया आमन कद जु गये र्य अपेमी परैस यह पए 

गोङ्घण्ड-यदा पिटासत्रट हे, हतसरोपर, सारसगन-- 
नने पुष्यन कफे रायाजीकी वेनी मूषी ची | 


पप्तायोगोवि 
-कदम्बलष्डी-यर्यौ जय श्रीह््णजीको प्यास टमी 6 
श्रीसभिकाजी सदिरयोसहित जठ ययी ओर श्रीयादुर्जीःी पिरय | 
स्यो तपराुण्ड आर विराखादुण्ड है | खदिरयन ( खाये } 
यदह गायका षिडक दै, दण्डलमन---यहो भगान ण्ठ 
णोग्ये ये, निरे गोपियोते दक भगगनो पनाया प 
भिनदृण्ड, उकारदुण्ड, चिन्तापर, गोपीनाथनी शै 
द्कजीके देन, वर््रुण्ड, सेरनङ्ुण्ड, चीर-त्सई, वरय 
( मकम्यर ) यौ मगरो वक्त मार था । मिद्ध 
भोजनस्य, मदा ( माडागार ) --न्तकी बरदपुरण 
चग प्रशंसा है--कमरं ( परिशासाजीका जमन्धात )- 

करदा 
-{ रञिनताजाका न-मम्यान ) व कणदुण्ठ, टम्बण्डी, दिडोटाः 
स्यान, महाप्रमनी, गोलानी अर गेतुउनायनीकी व्ये है 
करदे द, सरव राटी करनसि करद भक दो चये है घं 


[ 


यावरारर्णन ६३ 


श भी ] धोनायजीक मुदुट्के दर्शन है 1 बरूधमानुजीका उपयन 
। निगो, सद्ार-यं मदेषु, माणिकण्ड ह । इ 
् छोदनेे ९२ पुराना मदिर ओर पुनी यसतर् निकी 
९4 षड ( शङ्वूडके वयक स्थान )-यद्ो रम्ढुण्ड है। 
, टम किशोरीड्ष्ड, चोरुण्ड, दिदोल्का स्थान है । 
त फा स्थान उक्तफो कते है जह दृश्च इस प्रकारे खड हों 
य मना इथ हे ] ) गमे दू ओर पाड्खुण्ड ई । 
1 सामने नरकुण्ड है । यटा पच पण्डा ओर 
च क इत &ै कोकिठायन--जहौँं कोफरिखदुण्, कृष्णङण्ड, 
शैदण्ड, मदापरसुजीकी ठक, पाण्डवग्षाम्यान ह । 
र ह सषन पृक्ष जोर यह वेदत वडा यन दहै, देखने- 
। बड़ी बहेन--जर्यो बलमदङ्ण्ड, दाञजीका मदर 
वव्ने--यहों दृष्णदुण्ड, साक्षीगोपाटका मदिर ष्ट । 


वैन्दोखर 
यं चरणगह्गा, चरणपहाी-इसमे सूरय, चमा, नौ, षोड 
॥ ठुरनीफे चरणेक विह ह । पीदानायजीे दन, 
का स लिक दै 1 ययौ ो-दोटन करे मटरमे दुध्र भरकर 
पीप भेजा जाता था] ये सम खल बरसने नद्‌ 
के आत पास वारो ओर है । इनमे आगे-पीेका क्रम नी 
चरसनेसे भी जा सकने है ओर न दर्गोवसे भ । 


रासौरीग्राम 
यदा रासमण्डल्वा चतरा, रसहुण्ड, श्रीनायजीका जठधड्ा, 
गायनीकी वैढकः है ] शरीनायजीके नर्वद मने-- 


४ ज्जक्री की 
कामरर्गोवि 


-दै (भया मेदी कमर सन द) | कामस गोषीडुण्ड मेषी 


निर्‌, खण्ड, गोदनवुण्ड, मोदनजीका मन्दिर, दुरगसिनीका 
मन्दिर हई । 


दधिरगोव (दहर्गोव ) 


यह मगगानूने दिटीयकी हे । यँ दथिुण्ड, दगि्ारीदेग, 
मजभूषेण मददिर ( वृक्षम ), मुद्टसा चिह्र, सात सदिर्योका ग्रीक 
स्पान-गहौ मादो सदी पषठीको मेला ्टोता है । ययौ वेणु बद 
चरके ओर नाम ले लेकर बने दृर गवी गायको भग्ान्‌ने यपा 
है-धेणुनाक्षति गा म यरा हि," ( श्रीमद्धामयत ) कोटवन--- 
भगान्‌ले स्ताओं यँ कोट वनगया है । यो कदभ्बवण्डी है । 
यँ णाप्भुजीकी वेटक है । यही यश्ञोदाजीरो भगगन्त्े एस 
दिया है । चेटीरन--य्हां राम, छण, सीताजी, तुन्‌ 
नामके छण्ड आर हुमानूजीका मदिर ह | गहनयन, गोपा, 
गोषाशण्ड, पमन, फारैन गहय होधीकी टीला की हे । म 
प्रह्ादवुण्ड है । यह टिका दहने दिन एक ब्रह्मणं जो पडे 
कदत है सारे दिन निर्जल त्न करता है ओर होरीके समय 
ण्डे छान वके जरती दई होटी भिसके पा हया मूजनेको 
मी खग स्ववे न स्ह सवने उसमे ब्रीच होकर निक्त टं । 


ोलैको फाडवर्‌ निकउनेते उत गेोवका नाम करन इजा 8 । 
परमि अगे-- 


यानावर्णन | 

दोपश्चायी 
यदौ दाऊजीने देषजीका आर ममगनने रष्मी- 
नारायणजीका रूप धारण किया हे। यह्‌ स्प अपने ग्याल 
बाल मलार्ओको दिखाया हे । पोढानाधके दर्शन, क्षीर- 
सागर, दिंडोलेका स्थान, दूसरी ओर महाभ्रभुजोकी वटक हे । 
यसे कोीको मर्गं जाता है} नदर्गोपसे भी कोमीको मार्ग 


जाता है पर यात्रे ओर म्यान रद जते ह इसमे यही माम 
ठीफदहं। 


कोसी 
नान ओर कपासकी बहत बडी मण्डी है । इसको 
वुशस्परी भी कहते है । इसमें र्ाकयुण्ड, मायादुण्ड, विशाला- 
रण्ड ओर गोमतीदुण्ड है । यष्टा दशहरा ओर चैत सुदी द्ितीयाको 
फट्डोरका मेला होता दै । 
खता 
कोसीसे दक्षिणमें है, यह मथुरा ज्ठिकी एक तहसीट हं । 
कमी श्रीढच्णने यह उत धारण-टीठा की थी । इससे इसका नाम 
उता इजा 1 यदौ छत्रवन धा ( जय नदीं है ) } यह सर्मवुण्ड 
ह जो नगरसे अव कुठ अटग हे ] कोई-कोई कोसी नहीं जते है । 
उनका माम॑ शेषश्चायीसे न-दनवन, चन्दनपन, सुखराई्ताल, 
बुखराईसे बडाघाट, यद कालीदष्टकी ठीच है । श्रीमद्वागपतकी 
कालियमर्दनकी ˆ यँ ही होनी चादिये । उ्ञानीधाट, प्वेखन 


य, ०८५ % , ुे शेरण्ड है । दूसरा मा कोपीते "5 
भ्र 


र ययक शी 


ष्यपि १ (षय) मव, जयामदुण्ड, माण्दङुण्डः ग्रहाण 
तुर्ुननाय चीर राका का मदिर है । यमे स-- 
हेरगदट 

-2 | दाङ्मान द्रया अकर रह किया दै अर उमी एक 
वते यमुनातको सचा है । धौ समवाये गे दारर्भक 
मन्दिर द} यो मुनाजी अबनक विची-ती दीषनी ह} उप 
आगे ब्रशषट हं! य प्हणजीने तप करके वठ्‌ सुरनेका 
दोष धमा कराया ह | उपे भगे आभूपणवन ह, ज्तौ गोपिनि 
भगगरका श्नादं लगि भिया ? । उसमे जागे निवरागणन-- 
जहौ शक्नरनिगरण किया है । यद्यं नियर श्ड चइत हेते ४ । 
गुश्रा्रन--यर्लो गु ( चिरमिदी ) की माग बनाकर गोपिरयोन 


मगना शद्गार यि है) शरीमद्वागपत (१०।१५।१) 
मे हिव ध-- । 


शुज्ावतसपरिपिच्छलसन्सुखायः 
प्ष्न--विहापीर्जके दर्शन खीर बिहायुण्ड है 1 
कजरौदगोग्सि आगि दृद ओर भक्षयपट, अक्षय वि्यतीके दरशन 1 
मोपी-तखई-- जौ मग्ने मोपिरयोको भनेक खीटार्दु प्रकट 
दिखायी ह { स्कटिकमणिके शारप्रामनी---निनमे दुनवादेके से 
दर्शन शिते है । 


कै आभूपणयनः, निवारवन ओर युञ्जावन--इन वतीने वनोको 
यप्रनाजीने कार दिया दे । 


याएवणैन ६9 


वल्लमोचन, कात्यायनीधाट अर चीरवार 

यदौ भगरान्‌के पति होनेके निमित्त काप्यायनीका त्रत गोप- 
कन्याओनि किया या, पर यमुनाजीमे नगे टोकर खान करती थी, 
उस दोषो दूर करते ल्य ओर उस तुप्रथाको हटाने व्यि 
ओर उनकी ब्रेमाभक्तिको वदानेके चियि भगान्‌ उनके चर्लोको 
घाटपरसे उदा्कर कदम्पे उपर जा बैठे ! फिर उनकी प्रार्थनासे 
उने यच्च उनको दिये । यदौ चीरकदम्ब ओौर कात्थायनीदेवीके 
दर्शन है । महाप्रमुजीकी ठक हं, अने-- 


नन्द्धार 
~, जहो नन्दवाना नित्य चान ओर सन्व्या पिया करते थे । 
एक दिन योम ही व्रणरीका दृत नन्दरायजीको पकढकर्‌ ले 
मया धा ओर्‌ श्रीकृष्ण यरुणठोकमे जाकर न द्गात्राको खये थे । 
यछा न दवावाके दर्शन है । उसके पाम भयो है, नन्दरायको 
वरणका दूतत जब ले गया तत्र गोरपोकतो सय ह था, इसमे उस॒ 
स्थानका नाम भयमोव पड़ गया । उसके पास- 
वसर्ई्गोवि 
दै ] यह वघुदेवजीका गौ दै । यदौ वघुदेयदुण्ड है ! उससे भगे- 
वत्सवन 
ड, जहौ वर्सविहारी खवुरजीका मन्दिर है ओर महाप्रभुजीफी 
धरैठक, ग्माखमण्डटीका स्थान, ग्मराखकुण्ड शौर हचिोट-तीरथं & । 


यौ मगान्‌ यर्डोको चया करते ये | बहुण्ड--जहो ब्रहम 
जीने बञ्डे चुराये थे ! उसके पास- 


६८ यक सोके 
रासौरीरगोवि 


ष्ट} पटौ दाजी राममण्टका चीता ह उफ पए 
वेश्म ् जर उसके पाम भाटसगेपर ह, नष्टौ देी आरमत सैर 
गोपाः भट -ये दो गोर प्रमिद & । वीरधटमे दो मागं, फ 
तो यह ऊपर छवा ना शुका दै, दृसय युना पार दोर इमि, 
सुखराटयी, मेषवन, छनार्भोका ददन, मदरषन, भाण्यीषवन, यम्‌ 
उन, श्ामवुण्ड, श्यामजी ओर श्रीदमाजीरे मटर भ 
यख्वन । यौ महप्रयुजीपी यैटक ह । यद्येते यमरुनफ्रे वस ¶ 
शरदा है] छकरा आस्मि राममदरताट--जर्दौ भमन्‌, 
रामचन्दरनीका स्वम्प धारण किय( । उमे भे 
नरी-तेमरीरमोव 

हे । यदो बव्देयमीका मदिर है । नदीम नरीदियी शीर किरीर 
ण्ड & । सेम श्यामयनप्ीका भपथ्शा ह । नते, मेमदी - 
दोन भोरधिकाजीकी सेर सलियो ट ओर नज्की देवी दै 
सड़ी-बद दूरे भजन नगदुगाभं पूजन करन जति दै । या 
नारायणङ्ुण्ड है 1 इससे अगे- 


चौमहार्गोव 


--है । यद चतुर्ुखक्य अपथा द । बरडको चुरानेके बादर उ 
तरमाजी ययो भये ओर गवाना थयापत्‌ निव्य विहार देखा 1 
चतुर्ुखये ाशर्वचक्रित कर भमयान्‌को देखने रहे भौर श्र 
कर्के स्तुनि करने कगे । श्रीमद्वागवतमे ल्खि है 


यातावर्भन ६२ 


स्पृष्ा चतुपकुटफोटिभिरडधियुगम 


नत्वा भुदशरठनैक्छृतामिपेरम्‌ ॥ 


1 (१०। १३1 ६२) 
यद्य उस टीखाका निदर्शन है । 


आजही 
श्रीरुष्णने जवर अघाषुरको मारा था ओर ब्रह्माजी वाठक-बर्डो- 
को चशकः ठे गये ये तथा एक वर्पके अन तर्‌ ठीटाऊर लये तवं 
वाटकौनि ब्रज जाकर कहा या- 
अद्यानेन महान्याखो यशोदानन्दखलुना । 
हतोऽमिता वय चासादिति पाला व्रजे जगु, ॥ 
(भाग १० । १४ । ४८) 
-आज ही इम नन्दनन्दनने महासर्पं ( अधुर ) को मारा ओर 
ह्मे वचाया ! वदी यट (आजदी' गौय दहं । यद्ध याना नही 
जाती । ईस गमे पूसा दृद प्रबध है कि गाय-तैल-वरद्े बेचे 
न्वी जति | यदि कोई चोरीसे वेच दे ओर मादरम शे जायते 
उसे कठोर जानिदण्ड दिया जाता है ! यदि रेस सर््॑र हो जवे 
तो खय गर्ता ह्ये जाय । 
जैत 
यहं एृष्णङुण्ड है । इसमे एक पत्थरका बना भा त्रिशाठ 
सपं ्ै, जो अगघुरका निद्दान है । 
छटीकरा 
यरो सलियोके छै दु्लमयन दै । राधिकाजीका शुमभन ३ । 
१ 


वि । पञग्य शौ 


गरुड़ मोविन्दं 

अय मणये गवन पैन धारण कवा था तय ण्ठी 
मेय का परि येये उम मम्यदैः र्थन ४ | मरिद 
यह मुना £ शौर मरइ परिएनि रे 8 । ये गहर गोकि् 
मौ उपनाम पयि है, रेषा वदते वजार परते ४1 
मनपानि्ेति एक पी बना रकपर है--ौच दायते मन्दिरे 
यारट टापकरे दादुरजी, गरुद गोगिदमे ण्क मार्गने- 

अक्राट, अकरर्गोय 
~£ ( दूस ममते ये दृदायनते वे अनि 2), जो अनृप्नीनो 
सगय ब्रन्दापनमे मुरा आ समथ यगुनानीमि जपो सस्पके 
दर्दन क्रयि ये| ष्टौ षी व्रतेन रागफो शातं पिन यन्न 
यया था, उमीकरे शन यारदतेनी दद्य ? } यौ गोपीनायनी 
खा मदर है] ददात युश न्रीको यक्ष मेन देना ६। 
उस्र पस~ ह 
भत्तरोड 
~, जदो यरक्तों गसर्णोरौ धमपरयोन भगगनूो सौर 
शाखयायैको मोजन कशया या । कालिक शुम पूर्णमासीको यरद 
भेयं हआ करता है । कोई कोई मधुरातक याना पूरी करके रिरि 
सन्नी मौर मतरोटे दर्शन करने ह 1 यदी ठीक मी है) 
भतणेडका स्यान श्रीगिषयुस्वानिमश््रदायका है । अदनटेरं पदन 
गीपान्जीका दर्शन । उससे आन दृदावन है । 
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वृन्दावन < भ्रीवन्‌ ) 
कालीदह ८ काछियहद }, जो मगयानूमे काटियनागकषो 


, मदन कके यते निकाया या ] बहौ काल्यरदन रातुःजीके 
` दर्थन & | 


युगल्वाट--यदहौँ युगरकिंशोरजीको मदिरं है । $सके पास 
मदनमोदननीक मदिर हे । चगाढी गोस्यामी श्रीसनातनजीको यह 
शनि मिटी थी 1 न्तके सम्बन्धमे यह विग्द्‌ती है कि य श्रीप्रद 
मदुर किसी चायेजीऊे पास था, जिनको सनातनगोस्यामी बृन्दापन 
से गये] जिन चौवेजीे पास यह पिगरह पा उनो शसदुण्डा 
मजास्मे मदनमोहनजीकी जायदादमेसे एक दृकान मिरी हई है । 
वते यह्‌ मूति करटी पारी है तमसे करौीके मदनमोहनजीके 
मदिरे उनद्दौ चौयजीते वरारजोको सौ रुपये साटाना अयतक 
मि रहै ह । पद्‌ श्रीनरदरि चक्र्नासती बनायी हरं तीन सौ वषं 
फी पुरानी चगल पुस्तक प्मक्तिरतारूर मे इस मूर्तिकी प्रात्ति 
मदायनसे बनायी गयी हे 1 रिसी रामदास्त नामक पजारी सेने 
राढ पप्यरफा वृत सुन्द्र मदनमोदनजीका मदिर वयया या । 
रयन्‌ उतपीटननै समय वे मदनमोहनजी ऋरौडी पराये णये | 
उसके पीछे दसरा मदर व॑गला बातू नन्ददुमार्‌ घोपने बनयाया, 
उसे दसी मदनमोदनजीकी मूरति स्यापित षी गयी 1 


अदरैतयट--श्रोभदेत गोस्वामीजीकी तपोमूमि } अट सि्यो- 
यामा „. त दर दर्शन} 
| 


७२ यनी सोकी 


श्रीरेकिपिदारीजीका मन्दिरमे स्वामी ्रीहरिदासफे 
पूयदवहै) बो मनोर मुनि है । यँ सत्र टी बति पि 
श । सयेरे द्स बजेते दये तो आप उव्ते ष्ठी नही है ] दशन 
तेम भी क्षण-कषणते पर्दा आ जाता है | वधृदधनमे एक ष्ठी दिन 
भक्षयतृतीथाको चरणे दर्शन देते ह । मये एक दी दिन 
आशिन श पूर्णमासीको मुकुट ओर वंशी धारण कंसे £। 
एक ही दिन श्रारण द्युश तृतायको हिटोलेने इते & । दूष भात 
आपका प्रधान मोग है । मदिरे श्च, धण्टा षडियाठ, मृदङ्ग 
जदि त्रिमी प्रकारका याजा नष्वा बजता है | सामी श्रीहदिदास्ज 
बड़ परहैचे हए साधु ये, जिनकी दीप्र तानसेनका चेटा बनकर 
अर्भेबर्‌ बादाह आया या । 


श्रीनोकेगि्ारीजीके प्राकटधके सम्बध यह प्रनिद्धि है कि 
श्ीहरिदात्त स्वामी निमिपनमे भजन-पूजन करते थे, वही पृधरीके 
नीचे श्रीवेिगिहारीजी ग्रिशजमान भे जीर पे श्रीदरिदासि छवामीे 
वतिं करते थ } एक दिन आद्ना की कि यशे परष्वीते निकाटकर 
मेषि विधित सेग-पूजा करो } स्ामीजीनं आङ्ञातुसार कार्थं स्वि । 
इस श्रकार उनका प्रकट हज, परीषठेमे यद्र न्द्र वना । 


^ श्रीबेिविटारोजीके पर्न एक साय देरतक नष्टी दो 
सकने ] क्षण क्षणे पदा बदट्ता रहता है । इसके सम्बध 
पी ितदती १ कि श्वीवकिगिहारीजीकी परभ मनोहर आर 
मकि शोकपर रीश्चकर एक भक्त वहतेः दरतक धकर गये 
देना रदा आर श्रीवेकिगिदरीजी उसके प्रेमे वशीभूत हे? 





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धीभीतयावछमनीकी संकी ( वृ-दादन ) 















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प ५८+* 


५ 






१ ५५४ 


सेवाकुञ्च ( दावन्‌ ) 


छन्दावने ( थीघन ) ७३ 


उमे साय चभ गये | पृष्टे पुजा उद प्िनयपर परे । 
वमे दसा नियम दे कि को एक साथ बहत देरतकः दर्शन न 
' के प्रे । पदा यदल्ना रहता है । भोकर भाप ही तो है, 
एमं तको स्यान नही 1 श्रोनकिपिहारीनीकी मू वी ही 
मनोमोहक शोर चितताकर्पफ ह ! 


„ आगे खामी श्रीहितदखिशजीकरे दर्शन, श्रीपधावछमजीके 
दयन ये व्वामी श्रीहरिवनर्जीके पूय इषटदेय है । खामी 
्ीरिश भी बडे प्रतापो महास्मा ये} राधपठभजीके भोगे 
लिड नामी वस्तु 


तयाग्रछमजीके सम्बन्धे यह बनाया जातादि करि गोखामी 
्रीहितहरिपराजी देवपदके रहमेगले थे । बे देवमदसे श्रीरदापन 
भा रहे थे । रतम ये चटथावछ गपि हरे 1 वह एक भात्‌ 
देव नामक ब्राह्मणके यद्य यही श्रीरवाग्छमजीके श्रीपिमरह घे । 
दर्शन करते ही गोष्याभीजी सुण्व हो गये । आन्मदेयने वट मूर्ति 
गोग्वाभीजीकी मैट फी ओर अपनी दोनों कयाओका पाणिप्रहण 
स्कार भी मोस्यामीजीके साथ कर्‌ न्या । मोस्वामीजी श्रीराधा- 
चदमजीकी मूर्निको ररर श्रीबदायनर्मे अये भौर यट सुपत्‌ १५६५ 
म श्रीराघागछमजीथी स्थापना की ] प्रीहितटलिविरजी मेोष्वामीके 
तीन पतीथी | दोके धश चमे । आज भी ब्रीसघा्हमजीकी 
सेषा-पूना दृति भशन ४। 


ध दूगगडी, मागगढी, यमुनामगी, बुद्लगटी, भूङ्गाप्वट, 
^ - २1 मुम रग दै, निसमे शाका 


७ अजस शेक 


परिदिर विग पट ओर शव्या दर्शन होते है | ठष्तिादुण्ड है 
छटितामाग है । श्याम तमाले दृठ है जिनकी गख ग्निं शाठ 
भमर्जके र्न होते ह । यह श्ीराधा छृष्णक्रे नित्यगि्टाएका 
स्थल हे । यौ श्रि को नही रहने पाता । बदरका भी जे 
दिनम यौ जस्य वेढे रहते है रतम य्होसि चे नाते है । 
यदि कोड रातमें पकर रह जातात सवेरे मरा दशाया 
म॒प्रं मिर्ता है) यष्टा अनेक ग्रकारके ए्टोकी दग्ध नाफा 
कती दै } यहो बहूतोको मगयाू्वी रासरीदके प्र्यक्ञ /दज्ैन 
हए है! अभीतक जगञ्पी ह तरह हे । घोडे दिनोंसे एक री 
ने य्य सुगमरमरका एक गेटा.मा मदिर बनयाया है, उर 
युगल सरकामा सेवा पूजा होती दै । 

शक्नाखट पटौ श्रीरापिकाजीकी वैठकं है } श्रीरारिक्षामी 
वैः चरणचिह इं । 

यरा मनकरे शाठ््रामजीका मदि सो$वाजासम ह { इतन 
चे दाज्परामजी भी जीर कही देखने नटी बाते है} 


द्ाहरिदिरिटारजीका बनवाया भा ठोटे राधारमणजीका 
मद्रि टः जिम सगमरमरके खभ्म, पुतर्टयो भौर जाके 
कटा काम गड घु दर है| मन्दिर द्वे ही योग्ये 
मीये मुर्‌ ममते लेनी है । व्ततप्वमीो मगयान्‌ पतती 
कमर व्रिएजने ह । बड़ी शोमा होनी ट 1 श्रीदाय दर्शनीय 
भवित यह एक ही मन्दिर है} 


निपियन--दसीमे स्वामी श्रदरिदास्तमी विगते ये} वटी 
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ज्रौ मीच 





पर० छ 


श्ादिविदयारीललजीका मद्र (त्र दायन ) 


ननु भ्ल 





छृन्दायन ( धरीवने } ७५ 


ह ्रभेकिविहातीजी प्रकट हर्‌ दै, इषीसे इका साम निपिपन 
ह । को$-पे$ इसरो निधुन कहते ह, ओ केक भरम हे । 

शरीरधारमणजीका म्दिर--यह श्रीकृष्णचैत य सहाप्रमुकी 
मा गौडीय सम््रदायकरा मन्दिर दै} ये श्रीरघारमणजी श्रीगोपाल 
भग्जीके पूञ्य इषटदेय टै ! घुने है कि पहले ये श्रीराख््रामखूस- 
मेये कया इत प्रकार बतायी जाती है कि श्रीगोपाटमदरजी जब 
शरीचेतय महाप्रसुकी जक्ञासे श्रीष्रदायनमे निपासं कसे ये तमी 
उद श्रीचैनन्यके अन्तर्धान टोनैका समाचार भिर 1 उसी टु ख- 
म उनहोनि दक्षिणकी यात्रा की ओर श्रीगटकीजीसे द्वाद दास्पराम- 
की मूर्धियो स्ये । उर्टीको पधराकर वे एका-तमे सेयर पूजा 
केसेये) 

एय दिन किसी सेठने सभी मन्दिरोकरे श्रीभिमरहकी सेयाके 
च्ि यख, जमूपण बेटे | श्रीगोपाठभबरजी श्वीगेप्रिदजी) 
श्रीमोपीनायजी श्रीमदनमोहनजी आदि पिप्र्की सेवा करनेके 
स्थि शुठयि जति थे । उनकी भी वख्यती इच्छा ६ कि इनं 
्ीगिभरहौकी भोति हमारे भी उपासयद्यवे अद्पर्यन्न ्टोत तो 
हम मी इन यसरामूध्णोसे प्रमुका शगार करते ] श्रीमगवान्‌ 
तो भक्तप्छास्त्पतर ह । उनके व्यि को बात असम्म्ब तोष 
नमवे तो मक्तफी सदी मावना देखते 1 सन्ये मा्तेजो 
उदे सैमे चाक्ताषैवेधैसेष्टी बन जनित! श्रीमोपाठभ^जीदौी 
इच्छा मठयनी दो उदी । उदे रात्रिम नीद नहा जायी | तरे प्रमाश्र 

^ श्रते इण भगान्‌ वात्र क रहे ये, रे तो मोदि ^~ 

~ दरसन दीजिये, 8तो श्रमी मासस्‌ प्रतिमा 


७. जकर श्वासी 


के स्थि टापि दू | मक्तमयभन्तनदाती मयगरमूने अपे स्त 
सक्तरी प्र्थना खकार कट | व्यान वते-कसने षी मजीको कपा 
आ गयी ¦ उमी समय मानो मगगनने उदे काया जीद गेते--- 
° गोषा ' उड येरे दर्शन कर 1४ उन्दीमि हमृबदति इर मश 
उठे आर हनि पामे रली हर पिरारीषये सोया । उमे मो 
मु देखा उसे दक्र उनङी प्रततनाका दिकाना नही रहा) 
द्वादश शारप्रामेमिे ग्यारह तो य्पौके-व्यो र्वे 1 एक 
शपरस एक ड़ ही हुदर शुमनमोटिनी प्रिमा प्रकट शे 
गधी दं) बह पैशख छश्च 2 फी रात्रि यी भत दूसरे दिनि 
पू्ीपायो श्रीराररमणजीके प्राक बडा भारी उमे मनाया 
ग्या जो भगत पइपषी पूरणिमाकतो मनाया जाता है! वे रेष 
ग्रह शाडपराम अव भी धरीरधारमगनीवत भूमे परिधान ह । 
मेन्जी दक्षिणाय ब्रामण थ! उनरे शिष्य श्रीगोपीनायजी देव 
वदकै गौड़ ये। उदनि अपने माई श्रीदामोदरदासनीको मेग 
परिकार देकर उद परिह कर लेनेको आज्ञा दी । श्रीराघारमणनीके 
सेवापिकारी गोस्वामीगण उ हौ श्रीदामोतरदामजीके षन ६ } 
श्रीरभारमणजीकी मूर्तिं बडी हा मोहकः है ! श्रीगाट्ग्रमशिर 
का कूड्‌ अभीतक्‌ उनकी पीठे वियमान है । यही पना 
पद्धनि वही दही मधुर है । समयसे योड़ी दरम पर्हवनेसे भी 
दर्शन नही होते 1 श्ीह्दारनमे तीना श्रीकर स्वय प्रकट 
भार ्रचीन &--श्रीदत्दिसन्बामीके श्रीत्ेति गहरी नी, श्रीगेषटं 
मप्र श्रीराधारमणनी ओर श्रीदितदरिवशजःफे श्रीराम 
जी] तीनों ही मूतिरयो परम रम्य जौर मनोमो्टकः £ । इनका 





राखमण्डल ( 


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गोबुलान-~ मग्दिि व्ीरावाविान्जी ( बरृ-दावन) पर० ७७ 


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कैरीवट ( शेदाषन ) 





छृन्दावन ( श्रीचन ) ७७ 


प्रमान भोग पिकी मेभ-ञेदी सदीकी वुल्दियौ दै । शरीरामारमणजी- 
की सदी चौर घीठे पुर्तो मश & । इस मन्दिरके पास रासमण्डठका 
चौतरा है ओर्‌ करं मदिदिर टै) श्रीगेपारम्रजी भी वड प्रताणी 
महात्मा थे ] उस समय भगदिच्छसे टी रेसे-दमे प्रभायशाठी महामा 
अकटः हए ये जि-दोनि भक्तिरसका सुद्र प्रकट फर दिया चा 1 


इमके अगे गोपीनाथजीका मदिर है । यह मी श्रीकृष्ण 
चैतन्यसम्प्रदायका है ! परन्तु प्राचीन गोवीनाथजी जयपुर पधार 
गये £ । इनके सम्यन्धमे देसा घुना जाता है ति कीरं बगटी मधु 
पण्डित वृन्दा्रनमे अपे ओर मगरन््े दर्शक व्यि व्याल 
इ९ । भक्तकी व्यक्ुकतासे व्याद्ुड ्ोकर मगगरानूने वंश्षीवटमे नीचे 
गोषीनायस्पसे दरशन दिये 1 भक्त प्रसन्न हो गया । उनका पला 
मिदर राजपूतानानिवासी शीपयकषीठजीने बाया पा । शौर वमान 
मन्दिर किसी नन्दकुमार वादने बनयाया है 1 


श्रीगोङरानन्द-मन्दिर ८ दृस्तरा॒नाम श्रीराधिनोद्‌ )- 
शरीरोकनाय गोसखामी श्रीर्व्णचैतन्य महाप्रमुके मयस क्ेके भी 
पूर्वं छन्दीकी भनुमतिसे बन्दारन आये थे ओर्‌ उ-दोने श्रीरधा- 
परिनोद भगवानक्ती स्थापना की तया जीयनपर्य-त सेवा फरते रहै 1 
इप्तके आने वरीयट है 1 वंशीवटके नीये छद कर्‌ भीशयाम- 
सदर उशी बजाया परते थे ! यकं श्रीदङ्रजी भौर स्तुरानीजीके 
्रणवचिद्ट £ 1 यौ निव्यप्रति रास होतादै। 


उमके आने गोकुनायजी, मोसा्जी, दामोदर रसाणीजी सीर 
महाप्रधजीकी वरये हं 1 नदियादके श्रीमदनमोदनजीर्र मदिर है । 


७८ प्रचरी श्प 


गौपए्र मदादयजीरा मन्दिरमे महादेवजी भी भरन्‌ 
श्रारष्णे श्रपा् वनामकते प्रये हर 2 | इनके दरसन दिनं 
धृदानकी याना सक दी शनी । चिति समय भग्वाै श्प्द्‌ 
पूर्णिमा महारात किय" धा तम्र महान्रनीकी भी इच्छ सि 
हम भो हम लेको देने नतर मेपीका स्प परकर वं पये । 
भगगरान्‌ ताद गथ सौर तरो-भादये गधी ! उक्ती दिनमि गोप 
या गोपश्‌ नामस वितति होकर किवी यक्षं यस गय । 


श्रीगिरपररालाति तदचारीनीत मदिर गन्यिरफे मह्यराज 
जीषराजीका चनपाया हआ है निमे ट्सगेषष्छ, मनक्ाादक, 
नाददते अर शरीराय षने दनि & । ये अ्रप्रचरीतरी 
भीवड सिद्धये । इको ककतिद्धि शी । यदे तादमणभक् ये। 
प्रे ण्सि कुठ ठी ये, केवल मना श्रनाप था। राजा्भम 
सा ( सादा ) कडकर्‌ योरे ये । इ-होनं श्रीपनमे तरद वर्वतक 
धरीणेपाठं महामन्नका जनुण्न किया या! उगीरै दरें मिद्ध प्रा 
हरं । नकी मिद्धिमे बहत से चमर प्रसिद्ध ई, महाराज माधगसिह 
इनक ष्टी आश्चरवादसे राजा जपे ! ये निभ्वार्सूमश््रदायतरे थे | ने 
मन्दिरमे भी सद्‌ा रपत ्टोता है । 


सासापादुका मन्दिरि-यह भी बढा पिजक्षण है| इसके 
शिव्वपर॒चक्रबुदर्दन पिरिजमान दै ओर्‌ किष्र भी बहत 
शोभायमान है  यलवादरू भर्त बनकर नरप रदे, बर बािमीके 
धरते माघुकरी भिक्षा कते धे । प्सु इदोने अपनी शुदधिसे 
उस स्पे मटत-ते गर ओर स्यान ब्रहुन यो स्प्यो मो 








दािरथागदाते तथा, वि निरि सिरे शद 
समारा भाया एज ह तित) धमाप सवृकान्क 
नन्तो अर श्रीरयाष्पमयः न्ननि ष १ मै द्रप 
यद षिदय ! इना यानित पी) प प्रदधिनक च| 
परन्ि एए नद धे तेव मजने प्रर ण समानेमि 
सादा ( श्य) कथय मेये ये} दहो प्रीवं करद्‌ भन 
भीगेपान मक्षगन्धरकय जनुषा था षा] उनि दृं निदि असि 
छ । षी पिद्धिे वटून-मे चमकार प्रिद, स्रज माधयनि" 
इनके ही भा्ीवादसे राजा व पे गिम्वार्यशपदाकये य | इनके 
मदिरे भो मदा राततकेता १1 


उासायरापूका मन्दिर-पद मौ चश्च पिडकषणदै। इक 
शिव चकफसुदशैन रिरिजमान है लैर किण्व भी बहत 
शोभाममान षव । छायगादू रिरक अनर रनम रद, यवियोके 
चम्ते मधुकरी भिधा क्रेय | परतु शशेन अपनी युश्मे 
उम समप बतत गेत क्षीर खान बटन योद रपम मो 


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चु द्षव ( धिन) ७९ 


ठे रि जनम प्रसिद्ध परनके स्थान ह| इनको जरा-सी 
पतीप्र रेगनाथके मद्रका बुर्ज बन गया था, इसपर इर्हीनि 
मुकदमा ठडकर उमर कु« दिस्सा तड़ग दिया । ये खलबावू 
कटकताके बगाटी कायस्य ये 1 नजरजके इतने प्रेमी ये कि 
; उने कह दिया या कि मेी गरष्युफे बाद मेरे शपरका विमानन 
निकाटा जाय, व्रजकी गिम स्वीचते इए ले जाया जाय, रेसादी 
किया भी गया 1 इनका त्रजनिष्ठा अङौकिक धी | 
त्र्महण्ड-इसो यहद भी कषत ठ 1 भगयानने एक वार्‌ 
गोफ अपा तरहमटीक दिखाया चा । घ्रीमद्धगतमे छता ६-- 


ते त्त ह्महद्‌ नीता मप्रा कृष्णेन चोद््ता, । 
दद्छनदणो रोक याकरूरोऽध्यगात्‌ पुरा ॥ 
(१०1 २८1 १६) 
यष ब्रह्ुण्ड इसी लका घोतक टै । 
श्रीरद्ननाथक्षा मन्दिरि-जिसमे बट्ृत ऊँचा षछुर्णका गरइ- 
स्तम्भ दै, ्रिाङ पुष्करिणी ई, वीयं तिपाधिो ( रहनेका स्थान) 
है 1 एक-एक त्रिमारामि एकं एक वजँ है । दिम सेतत श्रीरन्तजीका 
मन्दिर टै उसीके आकारप्रकारका यष्ट मन्दिरि रे । बहुत द्चा 
दिखर्‌ है । पथिमका दसाजा व्रजके दरषाजोके आकारका-सा है, 
चार पर्कोटा ह । मन्दिरमे श्रीरक्ननाथजीकी चदी भिराठ चतुरमुजो 
मूर्तिं ह । चात भोर मन्दिरमे भन्यान्य मगम्ूर्तियों तया शरी- 
्णदत्तम्प्रदायके आख्यसेकी { पूर्यचरयोको ) मूर्तियौ है| यष 
मन्दिर वरनमे श्रीरमानुजसम्परदायकी कैर्तिस्सय दै ] शरोघलामी 


+ 


र पकी सते 


स्मे रवी भगाकाप नखना नजा दीधः द्मे दीनता र † 
पर मस्म स्पग्क माग दवनीते तिरा दिया । य मन्दि पर 
मरना भनयाया ट्बाद्ं { यष्ट मन्दिर प्राचीन करौगगीक्य प्क 
अद्र नमूना ४] ममूवा मन्दिर स पर्यये एसा धना कि, 
मोह दिर क्ौ नदी ते! उसके उपर ज कूवर 
र ८ उह भी भ्ल ८। उस पीठे दू्मय नये गोपिन्ददव- 
भीका मन्िर ८ निमे मैदोय मश्रदाये मदी कषयत सेका 
भूमा कते ष । 


तान गुद रगय्ै मन्दिरे पूर्वी ओर पुना विरि 
हं । यन-शुदड़ी, डी, ठट, पैट आजारफो कंते ह 1 पट 
कानके गुददी था । यर्होपा श्रैवकर श्राचीन मश्ाररा ज्ञान मणि 
की चचा परियः करने ये । अपने-अपने सिदारतोका, ददो 
परम आदान प्रदान किया करने ये । इसमे धीविष्णुलामि- 
सम्प्रा पिरकोका अखाड़ा ( मन्दिर ) रै । मेोक्षनीदापस्तजीका--- 
जा कि न्वामी श्रादरिदिसनीरी शिष्परर्पपर्म धे--मन्दिर 
ह, जो मोनीदास्नीकी रके नामते तिद्ध है । शर्की 
भवी ( वुयो ) जर पी प्रगन भोग हे, यकौ वनो धुवो 
पारसर होकर दुर-दूरलफः जाती है । बहुत द्नोतक भ्यो कीया 
वनी गती 2 । उनका भोग केक राषाटमके दिन स्ताः र । 
क्र कि यदौ स्वामो रिदासजीके करुआ ओर कौपीन रक्ले 
ह| इन-युदणीते जीर भी र्ट मन्दिरे ? | जव्र कमी दान-यदीे 
य्ुनाजी आ जाती है तव क्रा पय भस्ना जाता है । शष्ठनापुकिन, 


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शृन्दावन ( श्चीयन ) डे 


कने श्रीयमुनानीका व्रडा रमणीकः पुनि ( नट ) है । 
शो व (रेत ) यदी सन्दर € । 


५ भरीकिरोीरमणजीका मन्दिर हरे मीर सयदवाजार्ते 
1ेदोपत्वारी रानीका नाया दना है 1 यद्‌ विष्णुलामि- 
पम्रायके गोखामी श्रीयरीअलिजी { चमर ) के भश गोपाम 
यक्िलपसादजीकी भेट हे! 
नपपुके मक्षाराजङा वनयाया दज उहुत सुन्दर ओर शशाक 
शदरसे दर ब्रहमचारीजीको मेंट किया इभा ह॑ । इसमे 
जवी फारीगरीका शन्छा दृह्य ह ओर ब्रबचारीजीकि मन्दिरकै 
भवकरो बना हुआ ठे, धैती हो यहो मूर्तयो स्थापित है । यह 
निमबारकसमप्रदायका दर्शनीय व्रिशाठ मन्दिर ह । 
तदासे राजा बनमारीरायका बनवाया हुआ मन्दिर उसके 
1 राजसा भगगानूसे जमा गानूका मम्बन्ध रखते 
वै । इ मन्दिरमे सरजम हके मी मोग णाया जाता है । 
च, प्रसिद्ध मन्दिरिये हा है आर ऊट मन्दिर तो जारे 
€ सीमे कते है कि शवन्दावन्मे मन्निर भौर गदर है!" 
मक्त का ह कि-- 
विद्रायने वदरा घन । मनेन करत & साधून ॥ 
ईम बहन से भजनानन्दी' भक्ता जपि दव मजने करते 
। विद्वान्‌. मौ यद्य बहृत-ते ट । धर्म्षाख, बुद्ध, वाट वदे 
छिद्र यने दरक ओर बहत से है 1 म्यृनििपच्डी, कोतादी, 
* इकखाना रामङ्ष्ण सेयम, मननाग्रम, स्कृड, 


<६ यजा ममक 


अन्दिर शौर यमुना पनरे यङ्क वेके नीचे हनुमानूनी ई ; 
शस्ते घगे- 
साण्डीरवन 
~, जं माण्डोखट ३, माण्डीरकूप दै, यद बहत पित्र दीर्य 
है 1 कत्ाषठुरफो मारकर भग्तानूल इम परिमर कूपको प्रकत करिया 
यार इसमे जनान स्य चा । य दाजी गीर शीर्ण 
मन्दिर £ । यदहोपर दी वट्देवभीने प्रटम्बघुरको माय या 1 
जह्मपतैपुराण जीर यर्गसहितके अलुसार ब्रह्माजीने श्रीराधा र्णा 
विधां यदो हौ कराया ६ । पदे जहौ परियाका उव कि 
गया है, धरो वेड किवद्‌ती ४, कोः आर्ष प्रमाण नदी मिल । 
यदौ मगरानषे सुदुरषर दर्शन ए । 
मौटरगोव 

जदो भगगानूने दही ओर माणनके मौट बसेर तथा मो है 
सौर किर यशोदाजीके डरसे भागे है तया उपने जाक पि, 
तथ यरोदाजीने दधते दते कडा ६ै-- 

मी यदि नवनीत नीत मीच सिमेतेन। 

आतपवापितमूमौ माधय मा धाव मा धाव ॥ 

यर्होपर जीयगोखामीजीने भजने किया था | दाञजीका 
मदिर है । यदह मधुरा भिका तदसीठ हे । उससे जगे-- 

बेखतन 

~, षौ शरीठदमीजीजय मन्दिर है, श्रीरामानुजसम्प्रदायके पूर्वाचार्य. 





1.0: 41 


छाद्वहपुरगाी रातीका मन्दिर ( गरन्दायन ) 


केद्ीषाट ( श्दावन ) श [५ 
1 
८ 


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त्रजकी भरी = 





( = व 
(जन्य. ^ =+ ५ ०९५. पि 
१ नह 


चीरथाट (बरदावन ) 


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चुन्वत्वनके याद्‌ । 


भल मग्यरान हे । मटर रै | केने 
छप, जैमा पिः यागे कद अये ह । पुन देक 

॥ खेखनवन , ˆ 
षदो कि राषा-कृष्ण सले ( क्रीडा विवि) ह 

मनिसरावर्‌ 
(मानक स्यान }--य्टा किसी समव भ मन भि 
येने हृत ठ विनती करे वपो म ष। छ 
प्ोबर जहत इन्दर दै । यदौ राान्णद् कशी दो 
ठै दै । 
राया ॥ 
यष न्दरयजीकय साना दर| =! 


८७ 


स्मरे गै, 


कुष्णुण्टः सेद ग्र ष न 
व 11 
६। य श~ 4 मे तप किया 


८ , ५०्यनि शारी 
ल ष 


द यजत थते 


दती £ चर वार्भिः गोरेव बरहर जग्रनेकी पेमा 
करती £ ¦ दे को योगिका नदो 2, यथाकयधिव्‌ मन्त 
सेगमूनाकः निगढ वन क्ते रे ? रोदवनते वु दर पूर 
कोर नीपणोप £, जद विम्बासचा् प्रय र ये| दैमी प्रिद 
है । लोदयनते ग हक्षिगकी णोर 


अनन्दी-वन्दीदेवी 
-2 । ये दोनो देमि शरीनन्दणयङे यद भोर पपा करती चीं 
ऊर इसी ब्रहि निद श्रीरष्ण भौर वरैपजीके दर्शन किया करती 


यी । यहो न्दी अनन्दीकुण्ड टं । थनन्दी-र्दीते भये कैवा- 
मौव है । अद उससरो- 


यखदेवर्मोव 

-कंडा कते ह । यरो भीक्रेवनी स्िजने ह | श्याम 
भूति, उडी मनोर है, हने सामने कोने रेवतीनी परिगरजती 
दै! र्मे कद श्यनि गेरेदाञ्जी भी टै । श्रीकल्दरेपयीयर 
प्रपान भोग माएनमिध्री दै । यञ्च क्षीरप्ागर्‌ है । क्षीरतागप्के 
पण्दा सनाढ्य दं भर्‌ यर्देयजीके पुजारी अद्धिवासी | ये पगे 
जी वन्रनाभक्े पराये हृद्‌ है । न जने कसे कार-मदिमासे बहत 
दिनतक ये क्षीरसागपमे शयन क्रते रे } इसीते दस्य नाम॑ 
क्षीयमर हं । श्रमे घान, दान कलेका बहत पुण्य दै | किसी 
समय प्राञ्स दाहे रषानुसार जगनायदात्त सधुकनो भौर 
वर्ताम सदियातियेकि कयनानुमार कल्याणजी ' अदिवा्तीको 

दिया कि भ क्षीरसागरमे शयन कर रह! हु, सुप्ते निषछ 


५ 
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रजकी भोकी-= 
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श्रीबल्देवनीवी साकी 


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क्षीरणागर्‌ 





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शन्वाचनके दाद ८९ 


चे 
प उ्ोमे निखच्कर एवः कभ्ये मन्दिरमे वितजमान 
न | दती किती है कि श्रीकषीरसागस्से चछदेवनी 
तिं एष क्ये मन्दिरमे पराये मये जर उनकी सेपा- 
त भार्‌ श्रीकल्याणनीको चुपु्द्‌ पिया गया ] उन दिनो ब्रन- 
सद गुच्छे गेसापियोका प्रायन्य चा 1 यह मन्दिर भी 
मरि ड्भ । गुसा^जीरी भोत्से कल्याणजीको दुख 
् ताथा जीर दाङजीके शगार स्वि । सम तुभ 

पितिये। तत्र ्माद्रकी इतनी महिमा नष थौ { वरजके 
ही फर दना आनि ये } कल्याणनीके पासन एक कम्बल या, 
पी वे गुदुदी मारे पदे रदते ये । श्रीगरदेयजीरौ मूतिं 
मुषयक उगराहति भी कुछ यदी ह इतनी वदी वरिशाल मूरति 
बममण्डलमे दूसरी नदा ट } गेस्रामीजीकी ओससे दाञ्जीऊे 
स्यि जादि स्ददार समाई मिख्ती यी ! जपते पुजातैको वस्ब 
म पदा देखकर ब्देन स्वयं उ है अपनी रजाई उदा देते थे 1 
रन काठ कन्याणमी उह भगगानके वकम रख देते ये ! 

विने यद बात मोखा गोद्ुलनायजी महराजसे कड 

दी 1 ो्यामोजी एक दिन रत्नि बारह उजे सथपर्‌ चकर 
ते दाजी आये । बङदेवनीने यन्याणजीकोो जमाकर 
वहा-- कल्याण ] उठ, -य॒सारनी आ र्दे है, मेरी स्मारं सु्षे 
खदा दे धीर द्‌ कम्ब घ्ोढकर्‌ सो जा + कन्याणजीने देसा ही 
किमा 1 0 तो देखा कल्यानी कम्ब 
शदे पडे द ) गोषखा पूरा--प्वल्याणराय ¡ सचनछच 
मला क्या मात्‌ है १ जे यात थ वह्‌ कल्याणजीने सच-स्र 


न नि 


१९ वश्च दी 


यट द्री । तव श्तं शोका शुमाद्जी गो---श्ाजमे दानी 
नम्रे £ हण, पम तमे वापे मेगनपूजा फो ॥ चसक क्यप 
पारि धीरे यदेनी) मदमा वदनं णी | दूरदूरे दशना 
अने ठमै ! मन्दिरमी पिशञ यन श्या | ओीरविवि नरं छव 
मदिरो तोषा इमा दाडी पचा सो मन्दिने भस्य म) 
निट मौटणसेयकी सनाप दरट पे । सते सूरण सेन 
जानं वचाकर मामी} सरगम दस भार्यो दधर्‌ धरित 
रट मया । तप्र उतने प्रसन्न होकर पौच गोप श्रीर्देवी 
भेके व्यि न्गा दिये । ये पत गोप कल्याणनीके भेरा 
शीदाऊजीके मेवाधिकरी पण्योपर अमीतक ग्थिमान ट । पीस 
ज मयुरापर मरा भधिकार भा तो कपियाने उन य 
गमो ते अ्यो-का-तयो रखा को, अङ गोप आर वामे । इत 
प्रकारं सादं सात गोव ठ्गे £ | छु दिन भ्रेजी शम्ये 
माल्ममे वे ज हइए्ये । किर मदारनी क्िटोरिथक्रै आिगपे 
टट गे । सर्कारी सननेते भी तीन रूपमा रोन नटन ये । वे 
अप वैद हो गये । दाऊजीके पण्डे श्रीवहममम्प्रदायके &। 
अम भी जत्र गोङुट्के गोस्वामी सण्दप परथारमे है सो ते स्वय 
श्रोदाञजीका मोग धरते £ । शसीसे बञ्ेयजी न्मे पिति 
रटे £ । किसीका कना यहः है कि मयुरामिं शीकेदापकास्मीरजी 
ओर्‌ शरीकीटस्यामीजीने ओरंगरेतरफो करई चमत्तय दिये ये । 
उनसे ष्टौ स्य होकर किरि शेष त्रम बह ग्या ही नदी । {ते 
पारक तीये उसके अत्याचार बच मये । जष्तु } 
श्वाञ्जी तो गोरे ये, यह सूतिं श्याम श्यो है इतस 
१ 


९ 


१ ~ 
१ष््य्‌ 


५३९१३ - ~ 


यृन्दावनके धाद १] 


उम के तो यष्ट देते ह कि स्वाम मूरतिमे संन्दयं अभिक क्षिता 
ए सम मूत दै 1 धं ते है भीषणे एक छपना 
तेन पदवी व्गि किया था । उस समयकी भागनासे दाड- 

स्यमता आ गयी धीर उस्र समयका निद््ौन यष्ट श्याम 
र ट । श्रीमद्राम छिदा है-- 


श्वय विथ्रमयत्यायै पादसवाहनादिभिः ॥ 
(१०।१५। १५४) 


भवान्‌ भाप टौ पैर दाकर बरेवजीके परमो नूर 
कते ह ¡ जौर्‌ भी मवान्‌ बच्देवजीसे कते है # 


४ म्न ते समनभल 
` "^ म्‌ | 

ल 
ल 
भगो 


° ०। १०।५) 
आगे वर्णने दाञ्जे 
व जन्ते _ 9 मौर, मोर, चि 


नयोऽद्रय खग्ग सुभि 1 
गोप्योऽन्तरेण ५ 
"पृन्सरहा शी" 


न ^ 


द्‌ यजक् छोटी 


दषते जपनौ जीर दाऊजीकी एकता करते हर उने निने 
तेज स्थापित किया है । यी दाऊजीको सूर्म स्यामनाक्म कारण 
है । इस तेजकरे स्यापन शोनेते हयी मागे दाञतीने चैसराष्र, 
श्रटम्बाहुर भादिको भारा है । इतत पटञे दाञजीकी उत प्रकारो 
फो टीय देखनेमे नदी भायी है । श्रीगख्दैवनीर्मे देव््छ 
(भाद० न्च ६ ) यर मानप्ी्पतरं धूरणिमाफो) वड मी गेटे हेते है । 
बर्देगओोते रच को उत्तरकी तरपः दिवस्यतिं गेोपके रहनेका-- 
देवनगर 
स्यान है । यहोपर यमसागर कुण्ड बरौर उसके पास बहत प्राचीन 
वहत बडा एक फदम्बका वृक्ष है ओर दिदरस्यति गोपक पूजनेका 
गोवमेन-पमेत भी बहा अदतकः वर्तमान द । ब्देवगोपकरे पास 
हतोदागोपर €, वद्यं थीनन्दराधकी अवा ( बैठक ) है । 
ग्रह्माण्डधार 
श्रीकृष्णे भृ्तिकय खायी है, ईष वातरो पुनफर यशोदाजीने 
जत्र आपको धमकाया, त आप्त मुष खोढठ द्विया ओर सुरव 
श्रीयदोदारानीको ब्रह्माण्ड दिखा दिया । यह्‌ कथा श्रीमद्धागमनरमे 
ठी है| श्रीद्टराचयंने इसका उत प्रर वर्णन किथा हे-- 
शरतस्नामत्सीदेवि यण्नोदावादनयैरपसाम 
ग्यादितवक्त्रारोस्विरोकालोकयतर्दशलो गारम्‌ । 
< श्रीगोबिन्दा्टकत्‌ } 
उसी डीयका निदधन बह्मण्डधाट है ! य्ह बारडृष्ण मगयानुके 
दर्शन ई 1 ठक यशरुना किनारे गद ह्वी घु द्र स्यान दै । पच्य धार 


|) शृन्दायनके याद ॥९। 
प ष्की स्ककभी ण्यो । यलं प्रसादये मि दी 
९८ यमुना पर ( मयुर मरं )- 

त ६ 
श्वल जते तये ६ कि जन वषुदेवजी श्रीङष्णरो ठेकर्‌ 
श्म व खे तवर मामि यसुनाजी मिय वुदेवनी धै 
ष भ यमुगाजपर होकर ही चर दिये } जय गटेतकं जल्पे 
भिति प भर्‌ बहू जनेको-सी सम्भावना दुई नय लकये 
मम धिमदाकर्‌ चोे कोठे { इसे पतेन ठेवे ) इसीसे प्ट कोले 

पाट घर्‌ कोलिगोव वस गथा । इकर अदुार वदुदेवजी 
प संगन पु दो कोस दक्षिण पौरेघाखकी जगदसे महान प्पे 

रेष प्रतीत देता दै } हसे उख भगे-- 
कणीवर 

छ जह्य मानते करण ण्िष्टै। 
सोचने भरि स्वये दोड सावन कंन छेदत देखत मरक 1 


रोदव देखि जननि अकुलानी किये तुरत नौमाङ्‌ घुरी ॥ 
~यरदाथ 


यद यर्णेधकूष र रताचीक ह । मदनमो्नजी, माधवराय- 
जके मन्दिर ह 1 बु हटकर मदुरेशजीकये प्राक्य्य स्मान है 
यद ण्यरतम तप कनेयोग्प भूति ह ! ये म्युरेश्नी कोटि 


व्रि्ञ्वे ष । सिरि युना पार्‌ कण्के- 
मटाचन्‌ 
~, यक्षं ही पदसे नन्दजो रहा करते ये \ यट ही दषुदेवरी मधुर 
से श्रीफृष्णषते टये ये \ यद चिन्तादरण, यमयार्जुनमद्ग, ब्दा 


ग + 


९ यमक ्धाक्षी 


चरनक्य शयान नदरा दोलन { दृ्ुष्व) कर्क यै, 
नदष, पूतनाप्वा शक्नुम, दृणागर्चमन्न, (दमनः 
दपरिमधनका स्यान सम्या छमीणल्ना चौगसी भम 
मन्दिर पमे दञ्जीी मतिं शशिभती ६ । मयुरानाध, दारनाप 
भाद्‌ दयामनाके मधि नर्न चिक, गोदरे रीर दाञवीषी 
भन एयानीर रमेत नहो दोनो भाई बनकर की पृदुर 
चले ५ । भेप१ नारदीय जलय नग्दयन तप किमा #। 
दने वषत मे स्यान न £ । आव महावनं मुसच्मान मके, 
सेमे हिन्द । महायाने याम्‌ 


गोङुट 

जदो नन्दय गर्यो तिदक £ । टुएनीवार है, 
य भरप्रयजने श्रीमद्रानके कर पराप्य किये ट शीषर 
नायी, शगेुटनाथजीने भी कई पारायण किये ट ! दसीमे 
नीनोरी वैषये 8) मोुल्नायजो तो श्राय गोम ्षौ पिरजने 
ये | भाषो ओरगञे्र वादशादवको घनफ चम कार दिता धर्म 
भाग दिदुर्मोकी क्षा की घा। ( इनके ठुरनीका ताम श्रीगकुल- 
नापजी ही € । ) मी गोदनायनी मोदुम क्षी पितज रहे, 
भौर मर सरूप उक्त ययनोत्वीदनङे समवे ज-य देशभ चरे 
गये, जो रमे १ मयुरेशनी कोटाको, २ दिदधव्नायनी 
नापदराका, ३ दारकाधीशना कावरोरीको ( उदयषुरनरेश 
श्सी गदीके सिष्य), 2 गोुननायजी गदु श्वी शिन 
रहे ै, ५ गोदुख्वदमाजीो याम्बरको (मसतपरनरैर हसौ 
गदीके शिष्ये), ६ यल्ङृष्णजी सरलवो ८ नोवे शनक 


| धै ृन्व्ायनक्े यद्‌ 9९ 
ष्दरगही है | इष उदो गरक 

मदनमोहन दीके स्तम्ब धरम मत्तमद्‌ भी 
1, एक कममवनको । णक श्रीराजाठाकुरका नष्टि 
भी ई गोदुह अर प्रमन्य श्रीनायदवागकत 
सि श प नरे अतिरिक्तं जीर भी क मन्दिर € भिनकी 
॥. यकर चोत्ीस है । गेवुखे रनेसे ही बहमन 
अछ गोमा क्ते ह । गेकुकप दो-ग्क पिन्‌ 
मे ॥ यददोपर गुनराती से्येका स्थापित्त दो षाठ्शारपे है, 
पे को मोजन भी मिव्ता ह } यद्यो ही धरीविद्रटनाय- 
रीतसवाम पिले ह अौर्‌ इनके चपत्काग्को देकर सूर्वप्रपम 
"प कदा है--भ्मं लवर गिरधर सो पद्िवान, । ये उीतस्वामी 
ष्क सत्न हं } मशुराके चतु्येदी रै । इने वरध 

प्युगरमे ग्विमान टै ! ५९ 


रावे 

ज्यौ राघाधाट आर्‌ ध्रीटाडिकीजीके दर्शन दै । यद्‌ 
श्रीरघाजीकः निल षे, यदौ ट श्रीरधाजीका जन्म इभा था } 
पक्ष सेग-पूजा श्रीवछठमसम्प्रदायातुसार दती ह । मन्दिगकी 
ख्रस्था परमान सये शोचनीय ठे ! स्यान बदा हौ रमणीक 
ह किलत भेमरम्पत पदा ट 1 यसे यमुन््मजीवो पार कर मधुश 
धति है, गोघुख्से भी म्यत आ जते है | राप्ते लोकन, 
सज द्ोकर मप मयूरा आनेका कमे है । वस, यह तरजभूमि 
सशि पण्य है । क 

शि ८ 9 


कुठ अन्यं अविश्यक वात 

यु अन्य भाय्यक यातोका वर्णन कयै क्ष्व यह कें 
समाप्त किया जाता टे! कारण, वन इतने परिनि स्यान हि शौर 
उने साय रेपे श्निक्षस छने इए ए मिन सरल वर्णन 
करने ण्क बृदद्‌ प्रय तषार हो सस्ता 1 अरेठे दद्रा 
ष्टी ५००० मदिर बनटाये जाने £ 1 ब्रनमण्डध्यी वदी मटिश्य 
मानो जाती टै ओर्‌ भनफे (तीन योधे मयुर -यारी! धी एत 
यो कुठ देखने मानी है | 

यजभूमिमें मस्जिद 

योती ब्रज म्तनिद तया गिप्नाकम भी प्रये शो गपा, 
प्रह भिरि भी हिदूसखतिका यो साम्रास्य ट । भौर नौ 
मततमिदे चनी उनके साये मी भटगभयय दृदहयम है, भो 
िदुर्ओंफी उदारता या घोर उदाषीनतावो प्रकट करता है। 
उदाष्टरणार्थ- मयुर दो मप्तजिदे भराचीन, प्रसिद्ध आर विश 
है! णक तो केडवदेवजीके मदिरको तोद्कर शीरगमेवदाशं 
यनवायी गयी शौर दूसरी चीक-बाजार्मे अ्दुटनगी सकी 
बनवायी इई । यद म्तजिद सन्‌ १६६२ दखीमे बनी यतययी 
जाती है। भौर इतरा ऽति भी यह घना जाता है कि अर्हो 
यष्ट मसतभिद है वो पठे वस्ती नदीं थी, कुठ कसाह्याकी 
्षोपदविणे थी । भदुख्नयी खनि, जो नयघुल्टिमि फकीर धे, 


कुछ स-य आवदयक याते ९७ 


सुसध्मानोकरो तो यक्ष चा दिया कि देखो, मधुरम तुम्हारी 
मसनिद वन जायगी सोर टिन्दुओंको यह समञ्नाकर रागी कर 
य्य ङि देवे, यह मप्तजिद वननेसे यसे कसाई हट जार्थेगे 
ओर यह रदैणी भी मधुरके ब्राहर । इस प्रकार नवी खनि 
म्तजिद वनपायी ओर फिर चार ्ाह्णोको इसमे घण्टा बजानेके 
ध्थि नियुक्तं कर्‌ दिया । मसभिदके पास दूकान भी बनायी 
जिनमेसे आठ दूकानका किराया उन चार बराहमणोको जीविकार्थं 
मिलनेकी व्यक्खा क्रदी । # कुट ह्मण बहौ दुगापाट, 
विप्णुसदक्नाम तथा गोपारसदस्रनामका पाट किया करते ये, 
उ भी एक दूकान सौप दी । इत प्रकार मसनिद बनकर भी 
इपर अप्रिकार हिःदुर्भोका ही रहा । ¶क मुहा भी वँ सहता 
या, पर उमे भीहिदू ही नियुक्त कते धे। पर्‌ इपर भाकर 
दिदुओंने मूर्वतायश्च भपना अपरिकार्‌ छेड दिया । अपनी दुकार्ने 
सुसखमा्नोको वेच दी, ओर तवसे यह मसनिद सची महजिद हो 
गयी ¡ मथुरामे एक नार पेशगकी सवारी आयी थी । उन्दैँ यँ 
यह्‌ भसजिद देखकर बडा आर्य हआ, उ होने तुरत इसे तोड़ 
देनेका ह्म दे दिथा, पर हिदटुभनि दी एुशामद कर-ककर 
इसे द्टरसे बचा च्या । अस्तु 
न~ 


# हन पण्टा दजानेवाठे ब्राह्मं एक ब्राह्मणका वश अत्रतेक 
मथुरा नियमान्‌ द ओर षण्टापादके नामस प्रल्दि ६ ।--ङेलक 
व्र ज्ञो ५-- 


त्रजभूमिमें गोवध 

दिदुस्यानमे गेराका प्रथरकवद्रा ककिटि प्रश्न ह| गेम 
टि दभो छानीपर एयर रण गोध नाम पुतना तया गोप 
कयं दोन देने पिव पिवशय होना पदता । मठँ बमम भी 
गोपथ हेता ह, पद कैमे प्रितपसा क्रिय है। पर गेरी 
दिदओको यद जानङ्र परम भन्न षेण कि यहा गोर 
मद कराना हिदुभऊ ण्य उनना कटिन नही दै जितना अन्य 
स्यानीका ] करण, य जो गोधध होना है यट सरकयी निषनाह्न 
फी अवहेटना करके शेता & । मप्तपुरपरनेना खाई लेक इष 
धरजभूमिकी पद्िितासे वहत जपिक प्रमात्रित ९ भे भर उ 
फरमान निकाटकर कभी गोषरथ न यरौैकी अज्ञा जारी की षी। 
यष्टी नदी, उन्दोनि तो इत भूमिम श्िफारतक सैटनेकौ मना्ठी फः 
दी धी जीर अवतक्र भी वही मनाही चटी आं रही ् । मधुरा भौर 
ृन्दायनके वीचमे यत्र-तत्र उनके उक्त फरमानक्े शिटक्तिव गदे 
इए १} बीचमे इस निपरायकरी अषहटना होते देखकर पुन 
फरमान जारी कपि जा चु ह । दुबारा दिदायतका एक पएएमान 
सयू १८६६ मेँ जरी किया इज शषर-उधर्‌ गडा मिख्ता है । गोप 
सम्बधी फरमानका यानन नदी हो दा ह, इसव्ि हि-दुर्भोका 
परम कर्तव्य है कि वह्‌ चेष करके गोपथ बंद करानेका प्रयत करं । 
शक यां प्रयत्न किया जा चुका है, पर सं बार रसा सामूहिक 


यजभूमिमें गोवध ९९. 


उचोग कएनैकी जा्श्यक्ता है जो सफर होकर ही र्हे। 
इ ओर दि दुजको शीघ्रातिरीत्र ध्याने देना चाये तया षार 
सभा खीर प्रान्तीय समाम इस सम्बध प्श पूे जाने चाहिये । 
मगप्ताधारणकी जानकारीके ल्मि कर्नठ लेककी निषाज्ञका 
सरकारी हिद अनुगाद नीचे दिया जता है-- 


लेक ( सदी अपेजीमें ) 


मधुराजीकी भूमि हिदुर्जोकी पवित्र पूजा भक्ति करनेकी 
जगह दै, इसत जमीनके उपर किक त्रम गायोकि छ्य किसी 
प्रकार्की सकशीफ ओर हानि प्ैचानेकी सत्र छेको मनायी 
रनम जाती है| उन गार्योकी तरफ सव्र रोको दय। ओर 
उदारताका वर्ता करना चाहिये । उसी मथुराजीकी भूमिम बड़ा 
भारी प्रसिद्ध पुरुप, बही ितातरोका परनेमाग, दा शरूरवीर सस 
उभीनपर रज्यशसिन जमानेबाला, संब राजाअकि ऊपर राज्यं 
करनेवाला, बहादुर सेनापति लाई ॒ठेक बहादुर संग्राममे जीतने- 
थाट सेनापति, जिसके द्दयमे परमेद्वरने दया ओर उदारताकां 
अश स्थापन किया है, वद इत इक्ुमनामाको बाहर निकलता 
है कि कसाश्की जाति कोई मानस अयता दूसरा कोई मयुर 
श्रका रहनेवाखा होय अथग रुराकर्‌ ( पल्टन ) का सिपादी 
(मोस ) भयमा मुसाफिर दोय वह कोई सदरम, श्रमे शयया 
उसके पाप्षवाडी फोजकी जबनीते अथया मथुरा शहरके पड्म 
गायका क्ल नही करै, इस गागदर्मे यह लाहिर्‌ किया जाता है 
कि को भी मानस्त इस अमीनमे गारयोको न कटे, यदि फोई 


2५९ यनश्टी सशय 


एम अषराधरो क्या तो उमः वमू निधपष्धी ह्मण 
दी नामी अर व्ह कसूर किमी नरद माष नेष्ी दिया जायगा 1 
टिष्ठ जाजकी ताणं ३ जप्या १८०५ इना एवौउ्मन 
भरना तारीख ५ चव २२२० हिनिपै ।* 
पद नी पपी मोटेरा ( मरी अतरत) ` 
रस्त मेक्षवान भगाः 
पार्मीआन आगरम ण्ण्डहिटुस्तानी 
द्रसर्टर हवाश्ोर, वम्र । 


"ब 0 ५ 


मुय श्रन्दारनके वीचमें दिकार सेल्नेकी मना 
स्टेशनरी आज्ञा 


मार्फत करने इन्द एच सिमर सदिव कमेण अर्यात्‌ 
सरदार म्युरका ७ मार्च सन्‌ १८६६ मथु आर वृन्दातन- 
बाती लोकमहामष्िम कमेण्डर इनचीफ अर्थात्‌ मिपहसालरका 
हनू भजा गुजरये ष । इस मजमूनयो टशकरी गोर ओर दस्रा 
अधोराओेग उस मुकामोंको नमीच मनका हम दहते भी भव्रतक 
शिकार खेलते है, इक्तव्यि करनल सिमः साहयर फरमते हं कि यद 
साफ समञ्नना चाहिये जो फो यह काम करेगा उसको माहव 
भारी सजा देने कसर मही करेगे । पुरा भीर ब्रदानफे 
यीच यमुनाका दोन किना टिन्दुलकि समीप पवि बराबर दै, 
इस कारण निश्चय निषेप दज कि की उन मुकाम या उनके 
वीच बा नीच गोनी न चवे] सन्‌ १८६६ अप्रेजी २४ 
फृरयी ६ नपम्बरका हुम सुनाविक मौना गोकु ओर गि्दं उसका 
अंदाज डेढ़ मीक नौरेगागदसे जर य्ुनाके दोनों किनारे निषिद्ध 
स्थान सुनसघ्या दै, उस स्थानम ठशकरीलोक शिकार नहीं लेल्गा 
मुनाविक इषम अछिन रढीमेप्रन सदेव स्टेशन स्टाफ मथुरा । 


आवश्यकं घचनां -- 


८१) यमुनाजीका धारप्रबाह-- मथुरामे गिश्रातघारसे 
निमका माहात्य-वर्णन ऊपर किया जा चुका है, यमुनाजी 


॥ ~ मजी र्रकी 


दिनि दिन दरानिदूर पहैचती जानी है } मधुसक्तियो तथा 
धरनी यायो परम धर्म षै कि ३ उथोग कर्के उन 
धाटपर ठे आर्ये भौर बह सदा उस घाप तया छन्य धर्टोपर! 
निनपर अव्रतक वे है, यनी पटे | यदि रेता उचोध न क्रिया गय 
तो मयुराकी सारी योमा न हो जायगी | 


( २) गोचरमूमि--मथुरा वृ-दावनके वीच गोचचरमूमिके 
न्रि खगोय वाद्‌ ह्तान-दजी वमनि धनी-मानी उदार 
गोमक्तौसे चन्द करके क हजार रुपये शक्रे फ्ि ये । उनका 
प्रलोकगास होनेके उपरात शक दष्ट बना! उसने भुरा 
दन्दके वीच ध्वारेश' गोयकी दो निहा भूमि खरीद ठी है, 
निर्म ब्रजकी ये मुफ्त चरती है । 


4 


मथुरासे कछ तीथैखानोकी द्री तथा सवारी 


मीर 
मथुरासे ब्-दाषन ६ रेख मोटर तागा 
११ गरूड गोविन्द ० 9 9) 
1] गोकुल ४ 9 9 १ 
| महापन ५, क्चेपुर्से ० ० , 
१ + ७ प्केपुर्से ० » १ 
## बलद १० क्वेपुल्से ० ०) 
१) ॥] १२ पक्र पुल्से ० १) १) 
] गोपन १३ ७ १) १) 
+ राबुण्ड १५ ० ११ १ 
१ नदर्गोव ३ 2 १ १) 
1 बरसाना २८ ५ १) 9) 
9 रवि ४ ० 9 
१ दान्तनुक्ुण्ड 9 ० १ 9) 
"ड्य 


नोर--नन्दर्गोव या बरखानेको ररे जनेवाले बो अपवां छाता 
स्टेशनपर उतरे, वर्षे तागे भदिखे जा, षुडक कशी है । वैष 
मयुराजीठे सीधी मोटर लते भी प्राय रोज जाती है । 


रखप्पल्विय 


~ग. 


धीभिदियायायां पिप साप्म्यतेाः हयात्‌स्‌। 


पिष्णुस्यामिषदरालुगमोस्यामी शष्णमक्ाप्यः ॥ 3५ 
( गन्यूरः } भानीच्टरीमन्ीरच्राभिधान 

पुधत्तम्य भीमुष्रानम्द्नामा । 
मम्यापि श्रीमोमर्ष्णो चमूय 


शत्पुध्रोऽदे र्दमण कारषोऽम्य ॥२॥ 
चातुर्मास = गणना विदु समभि 

चे मुटः निस्थो वहप सत्राय । 
किश्चिषदाध्य ्रिभक्निलयस्नदित्प 

मर्य षिना क्षकरसम्पदनुप्रदोऽदो 4३४ 
सत्थ जगदेषणा दि सकला मोहोऽपि कीटुम्िकिः 
परष्यस्तौ ममतास्पद्तु किमपि दययष्न यास्त्येयम 1 
दासत्वेन षेरदडरृतिसपि प्राणादिः दोऽय 
भीमरष्णपदारविन्द्युगर्प्रातै स्पृ केवलम्‌ ॥४॥